_885253315.png)
Up Kiran, Digital Desk: सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में संसद में केंद्र सरकार की सुरक्षा रणनीति और विदेश नीति को लेकर तीखी आलोचना की है। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बावजूद अचानक युद्धविराम की घोषणा पर सवाल उठाए और इस फैसले को देश के हितों के खिलाफ बताया। अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को सिर्फ राजनीतिक विवाद के बजाय आम जनता की सुरक्षा और देश की संप्रभुता के संदर्भ में देखा है।
अखिलेश ने शुरुआत में भारतीय सेना की बहादुरी को सराहा और कहा कि हमारी फौज दुनिया की ताकतवर सेनाओं में से एक है, जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और एयरबेस पर सटीक हमला किया। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस मौके पर अगर सरकार ठोस कार्रवाई करती तो पाकिस्तान को एक बार के लिए रोकना संभव था, जिससे भविष्य में इस तरह की हरकतों की संभावना कम हो जाती। उन्होंने सवाल किया कि आखिर अचानक युद्धविराम क्यों लागू किया गया और क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक समझौता था। खासतौर पर उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा इस युद्धविराम की घोषणा का हवाला देते हुए केंद्र सरकार की विदेश नीति पर तंज कसा।
इससे पहले पहलगाम हमले को लेकर भी उन्होंने सरकार की खुफिया तंत्र की विफलता पर जोर दिया। अखिलेश ने कहा कि 370 हटाए जाने के बाद सरकार ने सुरक्षा का वादा किया था, लेकिन उस इलाके में हुए हमले ने स्पष्ट कर दिया कि प्रशासन ने जनता की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं लिया। उन्होंने पूछा कि आखिर जब घटना हो रही थी, तब वहां मौजूद अधिकारियों और सुरक्षा बलों ने क्यों कार्रवाई नहीं की। जनता में इस तरह की घटनाओं से गहरा रोष है और सवाल उठ रहा है कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों को कितनी ईमानदारी से निभा रही है।
लोकसभा में उन्होंने ऑपरेशन महादेव के समय पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि जहां आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, वहीं राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिशें भी नजर आ रही हैं। पुलवामा हमले की जांच और आतंकियों की पकड़ के संबंध में उन्होंने कहा कि यदि सरकार के पास तकनीक और खुफिया जानकारी है तो वह अब तक उस घटना को रोक सकती थी। उन्होंने केंद्र सरकार से जनता के सामने यह स्पष्ट करने को कहा कि आखिर पुलवामा जैसे हमले को रोकने में खामी क्यों रही।
अखिलेश यादव के ये बयान राजनीतिक गहमागहमी के बीच देश के नागरिकों के लिए सुरक्षा और पारदर्शिता की मांग को उजागर करते हैं। उनकी आलोचना में सरकार की खुफिया तंत्र की कमज़ोरियों और फैसलों की पारदर्शिता की कमी पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही, वे यह जताते हैं कि युद्ध या सुरक्षा से जुड़ी नीतियां केवल राजनीतिक फायदे के लिए नहीं, बल्कि वास्तविक जनता की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बननी चाहिए।
--Advertisement--