
Up Kiran, Digital Desk: संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति पर एक प्रस्ताव लाया गया था, जिस पर भारत ने मतदान से दूरी बना ली। भारत का कहना है कि यह प्रस्ताव अफगानिस्तान की धरती से होने वाले सीमा पार आतंकवाद और वहां मौजूद आतंकी संगठनों के खतरे को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं करता।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत रुचिरा कंबोज ने भारत के इस रुख को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए होता रहेगा, तब तक क्षेत्र में शांति और सुरक्षा स्थापित नहीं हो सकती। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि प्रस्ताव में आतंकवाद से लड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को और मजबूत करने पर स्पष्ट रूप से ज़ोर दिया जाना चाहिए था।
कंबोज ने भारत की चिंताओं को दोहराते हुए कहा कि अफगानिस्तान में स्थायी शांति और स्थिरता तभी आ सकती है, जब वहां एक समावेशी सरकार हो, जिसमें सभी समुदायों और समूहों का प्रतिनिधित्व हो। भारत ने महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के सम्मान की भी बात की, जो अफगानिस्तान में लगातार चिंता का विषय बनी हुई है।
भारत हमेशा से अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़ा रहा है और मानवीय सहायता पहुंचाने में भी सबसे आगे रहा है। लेकिन, सुरक्षा के मुद्दे पर भारत का रुख अडिग है। 2020 में तालिबान और अमेरिका के बीच हुए दोहा समझौते के बाद से ही भारत इस बात पर लगातार चिंता व्यक्त करता रहा है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल सीमा पार आतंकवाद और आतंकी गतिविधियों के लिए न हो। यह भारत की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
जिसका शीर्षक "अफगानिस्तान की स्थिति" था, को 118 देशों के समर्थन से पारित किया गया, जबकि भारत सहित 6 देशों ने मतदान से अनुपस्थित रहने का फैसला किया। अनुपस्थित रहने वाले अन्य देशों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, रूस, सीरिया और उत्तर कोरिया शामिल थे। भारत का यह कदम न केवल उसकी अपनी सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि आतंकवाद पर किसी भी तरह का समझौता बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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