img

भगवान शिव के एक नही बल्कि कई नाम है. जैसे- भूतनाथ, नंदराज, महाकाल, रुद्रनाथ, नटराज, विषधारी, शिवजी, शंभु आदि. और इनके प्रत्येक नाम का अपना एक अर्थ है. भोले बाबा को शमशान निवासी भी कहा जाता है. क्योकि शंकर भगवान शमशान में निवास करते है. अब आपके मन में भी ये बात आई होगी किदे वो के देव महादेव का श्मशान में क्या काम है. चलिए आपको बताते हैं .धार्मिक ग्रंथ में वर्णित एक कथा में त्रिलोकेश ने इस प्रश्न का जवाब दिया है. जिसमें देवी उमा ने जटाधारी से पूछा है कि, हे नीलकण्ठ आप सर्वगुण संपन्न निवास स्थानों को त्यागकर श्मशान जैसे भयानक और अपवित्र स्थान में क्यों रहते हो. जिसपर देवादिदेव ने देवी उमा के मन की दुविधा को खत्म करते हुए उन्हे बताया कि, हे प्रिये मैं सदा पवित्र स्थान ढूंढने के लिए सारी पृथ्वी पर दिन- रात विचरण करता रहता हूं, लेकिन मुझे शमशान से बढ़कर कोई दूसरा पवित्र स्थान नहीं दिखाई देता है.. इसलिए में श्मशान में रहता हूं वहां मेरा मन अधिक लगता है. 
शमशान भूमि बरगद की डालियों से आच्छादित और मुर्दों के शरीर से टूट कर गिरी हुई पुष्प मालाओं के साथ विभूषित होती है... और ये मेरे भूत गण भी तो शमशान में ही रमते है, इन भूत गणो के बिना मै कहीं भी रह नहीं सकता हूं. इसलिए शमशान ही मेरे लिए पवित्र और स्वर्गीय स्थान है. पवित्र वस्तु की इच्छा रखने वाले उपासक इसी की उपासना करते हैं. श्मशान भूमि से ज्यादा पवित्र स्थान कोई और स्थान नहीं है.
मेरे अलावा कोई दूसरा भूत जनित भय का नाश नहीं कर सकता है... इसलिए मैं श्मशान में रहकर समस्त प्रजा का रोज पालन करता हूं. मेरी आज्ञा मानकर ही भूतों का समाज अब इस संसार में किसी की हत्या नहीं कर सकता हैं. दुनिया के हित के लिए मैं उन भूतों को श्मशान में रखता हूं.
श्मशान में ही जीवन का अंत होता है. इसीलिए शिवजी का निवास ऐसी जगह है. जहां मानव शरीर उससे जुड़े सारे रिश्ते, बंधन, मोह, माया से परे हो जाता है. इस सभी बंधने से परे मृत्यु के बाद आत्मा परमात्मा में ही समा जाती है. 
महाकाल ने अपने विकराल भयानक रुप के बारे में बताते हुए कहा कि, जगत के सारे पदार्थ दो भागों में विभाजित है उसी प्रकार विष्णु और शिव रूपी शरीर से मैं सदा लोगों की रक्षा करता हूं.
विकराल नेत्र से युक्त और शूल, पटिश से सुशोभित भयानक आकृति वाला मेरा रूप आग्रह है... यह संपूर्ण जगत के हित में तत्पर रहता है. यदि मैं इस रूप को त्याग कर इसके विपरीत हो जाऊं तो उसी समय संपूर्ण लोकों की दशा विपरीत हो जाएगी... लोकहित को ध्यान मे रखते हुए मैने ये रुप धारण किया है.

--Advertisement--