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Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में हाल ही में हुई बादल फटने की घटना ने भारी तबाही मचाई। खीरगंगा नदी में आई बाढ़ ने पूरे गांव को नष्ट कर दिया जिसमें कई लोगों की जान चली गई और कई अन्य लापता हैं। यह प्राकृतिक आपदा लोगों के लिए एक बड़ी चेतावनी है मगर सवाल यह उठता है कि जब भूकंप और सुनामी के लिए अलर्ट मिल जाते हैं तो बादल फटने का अलर्ट क्यों नहीं मिल पाता? आधुनिक मौसम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बावजूद यह घटना अचानक क्यों हो जाती है और वैज्ञानिक इसे सही समय पर क्यों नहीं पकड़ पाते? आइए इस सवाल के उत्तर पर नजर डालें।

बादल फटने की घटना क्या है

हर साल देश के अलग अलग हिस्सों में बादल फटने की घटनाएं होती हैं जिनमें भारी नुकसान होता है। यह एक ऐसी आपदा है जो अचानक आती है और आस-पास के इलाके को तबाह कर देती है। बादल फटना कोई सामान्य बारिश नहीं होती। यह तब होता है जब कुछ ही घंटों में सैकड़ों मिलीमीटर बारिश एक छोटे से इलाके में हो जाती है। ये खासतौर पर पहाड़ी इलाकों में होता है जहां आर्द्रता से भरे बादल अचानक बहुत अधिक पानी छोड़ देते हैं। इस प्रक्रिया से बाढ़ भूस्खलन और जीवन व संपत्ति का नुकसान होता है।

भविष्यवाणी में क्यों आती हैं मुश्किलें 

आजकल के मौसम वैज्ञानिकों के पास रडार उपग्रह और सुपरकंप्यूटर जैसी अत्याधुनिक तकनीकें हैं फिर भी बादल फटने की घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है। इसके पीछे कई कारण हैं। सबसे पहला कारण यह है कि बादल फटना छोटे क्षेत्रों में होता है और अचानक होने वाली घटना होती है जिससे इसे पकड़ना मुश्किल हो जाता है। मौजूदा मौसम मॉडल बड़े इलाकों के लिए तैयार किए जाते हैं और छोटे क्षेत्रों में सटीक डेटा एकत्र करना कठिन हो जाता है।

बादल फटने की प्रक्रिया बहुत तेजी से होती है। आर्द्रता हवा की गति और तापमान जैसी परिस्थितियां कुछ ही मिनटों में बदल सकती हैं। मौजूदा तकनीक इस तेजी से बदलाव को सही समय पर पकड़ने में सक्षम नहीं है जिससे भविष्यवाणी में बाधा आती है।

पहाड़ी इलाकों की जटिलता

हिमालय जैसे पर्वतीय इलाकों की संरचना के कारण मौसम का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है। पहाड़ों का हवाओं पर प्रभाव पड़ता है जिससे बादल स्थानीय रूप से बनते हैं और फटते हैं। इन सूक्ष्म बदलावों को मौजूदा मौसम मॉडल में शामिल करना चुनौतीपूर्ण होता है।

 

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