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Up Kiran, Digital Desk: मलयालम फिल्म उद्योग की सबसे बड़ी और प्रभावशाली संस्था, एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (AMMA - अम्मा) में हमेशा से पुरुषों का दबदबा रहा है। ऐसे में, अभिनेत्री श्वेता मेनन के संदर्भ में यह सवाल उठ रहा है कि क्या वह इस संगठन में 'कांच की छत' (glass ceiling) को तोड़ने वाली पहली महिला बन पाएंगी?

'कांच की छत' एक ऐसी अदृश्य बाधा को संदर्भित करती है जो महिलाओं को, विशेष रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में, शीर्ष नेतृत्व पदों तक पहुँचने से रोकती है। 'अम्मा' जैसी संस्था में, जहाँ पुरुषों का दशकों से वर्चस्व रहा है, किसी महिला का महत्वपूर्ण पद पर पहुँचना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि होगी।

श्वेता मेनन एक अनुभवी और सम्मानित अभिनेत्री हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मुखरता से अपनी पहचान बनाई है। वह मलयालम सिनेमा में एक मजबूत आवाज मानी जाती हैं। यदि वह 'अम्मा' में किसी उच्च पद पर पहुँचने में सफल होती हैं, तो यह न केवल उनके लिए एक व्यक्तिगत जीत होगी, बल्कि यह संगठन के भीतर लैंगिक समानता और समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी होगा।

यह सिर्फ श्वेता मेनन के बारे में नहीं है, बल्कि यह मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं की भूमिका और प्रतिनिधित्व के बारे में एक बड़ी बातचीत को भी जन्म देता है। क्या 'अम्मा' जैसी संस्थाएं बदलती हैं और महिलाओं को अधिक नेतृत्व की भूमिकाएं देती हैं, यह उद्योग के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होगा।

श्वेता मेनन के संभावित नेतृत्व की चर्चा इस बात का संकेत है कि उद्योग में बदलाव की बयार बह रही है। यदि वह सफल होती हैं, तो वह कई अन्य महिला कलाकारों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं और 'अम्मा' को अधिक समावेशी और विविध संगठन बनाने में मदद कर सकती हैं।

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