मानव तस्करी से जुड़ा बड़ा मामला सामने आया, 52 लोगों को बस से ले जाया जा रहा था तमिलनाडु

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सूरजपुर, 06 नवम्बर (हि.स)। जिले के दूरस्थ अंचल बिहारपुर क्षेत्र में मानव तस्करी से जुड़ा बड़ा मामला सामने आया है। क्षेत्र से करीब 52 लोगों को बस के माध्यम से तमिलनाडु राज्य लेकर जाने के दौरान ग्रामीणों ने पुलिस व चाईल्ड लाइन की टीम को सूचना दी, जिसके बाद मानव तस्करी से जुड़ा यह मामला 24 घंटे से अधिक समय गुजरने के बाद ग्रामीणों द्वारा मीडियाकर्मियों को सूचित करने के बाद सामने आया है।

52 लोगों में 32 किशोर भी शामिल हैं। 15 से 17 वर्ष के किशोरों को सूरजपुर यह समाचार लिखे जाने तक लाया गया है। बस में सवार अन्य 20 लोग वयस्क हैं। दूसरी तरफ स्थानीय सरगुजा सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने प्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि सरकार आदिवासी गरीबों को रोजगार देने में असफल है, इस कारण लोग पलायन कर रहे हैं।

मामले पर जिला प्रशासन की अधिकृत पक्ष के लिए लगातार काल करने के बाद कलेक्टर सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा मोबाइल काल रिसीव नहीं किया गया है।

मामले की पुष्टी जिले के सीडब्ल्यूसी (चाइल्ड लाइन) अधिकारी मनोज जायसवाल ने करते हुए कहा है कि मामले पर जांच की जा रही है। सभी किशोरों को कोविड-19 जांच के लिए जिला अस्पताल सूरजपुर भेजा गया है।

बहरहाल, अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार देर रात जिले के ओड़गी विकासखंड अंतर्गत आने वाले दूरस्थ अंचल में शामिल बिहारपुर क्षेत्र के ग्राम विशालपुर में तमिलनाडु प्रान्त की एक बस को लोगों ने देखा और रोककर चालक से पूछताछ की तो संदेहास्पद रूप से जवाब नहीं देने पर ग्रामीणों ने इसकी सूचना पुलिस व सीडब्ल्यूसी को दी।

पुलिस ने मौके पर पहुंचकर बस को अपने कब्जे में ले लिया और पूरी रात मजदूर थाने में रहे जिनके खाने आदि की व्यवस्था की गई थी। हालांकि पुलिस ने इस मामले में कोई कार्रवाई समाचार लिखे जाने तक नहीं की है। पुलिस के अनुसार बच्चों को सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया गया है, जहां से आगे की कार्रवाई की जाएगी।

इधर, जिला बाल सरंक्षण अधिकारी मनोज जायसवाल ने बताया कि विशालपुर में बच्चों के होने की जानकारी मिलने पर टीम वहां भेजी गई थी। सभी 32 बच्चों को सूरजपुर लाया जा रहा है जहां से उन्हें बाल सरंक्षण गृह भेजा जाएगा ओर बाद में परिवार की तस्दीक के बाद परिजनों को सौंप दिया जाएगा।

कोविड-19 के बढ़ते संक्रमणकाल में नहीं किया जा रहा था नियमों का पालन

बिहारपुर में 52 मजदूरों को बस क्रमांक टीएन 34बी 4496 से तमिलनाडु की एक धागा कंपनी में काम करने के नाम से लेकर जाने की जानकारी बस में सवार किशोरों व 20 अन्य व्यस्क लोगो ने बताई है। उक्त सभी लोग बलरामपुर, सिंगरौली व बिहारपुर अंचल के बताए गए हैं।

इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि कोविड-19 वायरस के बढ़ते संक्रमण पर रोकथाम के कार्यों में अंतरराज्यीय सीमा क्षेत्रों में आवाजाही पर निगरानी पुलिस व जिला प्रशासन की टीम करनें के दावे अक्सर करती रही हैं, वहीं दूसरी तरफ जिस बस से उन्हें ले जाया जा रहा था, उसमें कोरोना नियमों का कोई पालन नहीं किया जा रहा था। बस में मौजूद किशोरों व वयस्क लोग न तो मास्क लगाए हुए थे और न ही कोई अन्य एहतियात बरती जा रही थी।

प्रशासन एवं पुलिस की चुप्पी व मामले पर गतिविधीयां बढ़ा रही संदेह के दायरे को

मामले में यह बताया जा रहा है कि संबधित बस मध्यप्रदेश से कुछ लोगों को लेकर अंतरराज्यीय जांच नाका पार करते हुए, स्थानीय लोगों को गांव से लेकर रवाना होने के बाद संदेह पर ग्रामीणों ने रोका तो यह मामला सामने आया, लेकिन जहां सीमा पर नाका लगा हुआ है। इन नाकों पर आम आदमी के गुजरने में पुलिस व प्रशासन की संयुक्त टीम जो आमजनों सें ऐसी पूछताछ करती है कि स्थानीय लोगों के पसीने छूट जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ इतनी बड़ी बस बिना रोक टोक के कैसे पार हो गई, क्या कोई चूक हुई या नाके पर मौजूद पुलिस व प्रशासनिक टीम के अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत सें तो संभव हुई तो नहीं। यह जांच का विषय हो सकता है।

केंद्रीय मंत्री ने सरकार व पुलिस पर खड़े किए सवाल

इधर केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह ने 52 मजदूरों को तमिलनाडु ले जाये जाने की जानकारी पर सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। सिंह ने कहा है कि प्रदेश सरकार आदिवासी गरीबों को रोजगार देने में असफल है । जिससे सूरजपुर, बलरामपुर जिले से लोग पलायन को विवश है। उन्होंने पुलिस के नाकों पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इन नाकों में जब 24 घण्टे पुलिस तैनात रहती है तो यह बस कैसे पार हो गई। मजदूरों के इस पलायन में पुलिस की मिलीभगत तो नहीं है, इसकी जांच होनी चाहिए।

रोजगार के अवसरों के अभाव में हो रहा पलायन

कोरोना काल मे बड़े पैमाने पर इन इलाकों से मजदूर घर लौटे हैं। जो रोजगार के अभाव में बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। वैसे तो रोजाना स्थानीय प्रशासनिक अमला हो या राजधानी रायपुर से राज्य सरकार के तरफ से अधिकृत रूप से होने वाली विज्ञप्ति जिसमें लंबे चौड़े आकड़ों की बाजीगरी कर दावे किए जाते हैं,

लेकिन भौतिक धरातल पर जब जिला मुख्यालय के आसपास लौटे प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के कार्यों में मजदूरी तक नहीं मिल रही तो फिर दूरस्थ क्षेत्रों में हकीकत यह है कि गांव में रोजगार की कोई व्यवस्था नहीं है, जिससे लोग पलायन करने को विवश है। इसके अलावा दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदाय जो वर्तमान समय में भी मुख्यधारा सें जुड़ नहीं पाई है।

इन क्षेत्रों में मानव तस्करों के दलालों द्वारा आमदनी के अच्छे अवसरों व सुविधाओं से लबरेज दावे करते हुए एडवांस, कही पांच हजार तो कहीं दस हजार परिवार के परिजनों को देकर बीते वर्षों में बड़े स्तर पर मानव तस्करी के मामले इसी बिहारपुर क्षेत्र से जुड़े गांव से सामने आए थे। लॉकडाउन के बाद से ठप्प पड़ी गतिविधियों के प्रभाव से परिवार का भरण पोषण के लिए कोई अवसर स्थानीय तौर पर या नगरीय क्षेत्रों में उपलब्ध नहीं होने की वजह से मानव तस्करों के दलालों का समूह सूरजपुर जिले के इन क्षेत्रों में अब फिर सक्रिय हो गया है, जो मजदूरों को बाहर लेकर जाना चाहते हैं।

पहले ही दो लोगों की जा चुकी है जान

कोरोना काल मे जहां बाहर से लौटा एक युवक कोरोना संक्रमित होकर इसी क्षेत्र में पहुंचा था, जिसकी उपचार के दौरान मौत हो गई थी। वह युवक बिहारपुर क्षेत्र का रहने वाला था। इसी तरह दूसरा मामला जिसमें आंध्र प्रदेश में जिले के बिहारपुर क्षेत्र के गांव के एक युवक की मौत हो गई थी, जिसका शव लाने में लगातार परिजनों द्वारा चक्कर लगाने के बाद समाचारों की सुर्खियों में शामिल हुआ तो जाकर जैसे तैसे यहां शव लाया गया था।

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