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Up kiran,Digital Desk : जब भी हम 'ताजमहल' का नाम सुनते हैं, तो ज़हन में आगरा के सफेद संगमरमरी मकबरे की तस्वीर उभरती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शाहजहां ने अपनी मोहब्बत का यह अजूबा बनाना शुरू भी नहीं किया था, उससे 6 साल पहले ही दक्षिण भारत में मोहब्बत की एक और शानदार निशानी बनकर तैयार हो चुकी थी? मिलिए इब्राहिम रोजा मकबरे से, जिसे प्यार से 'दक्षिण का ताज' या 'काला ताजमहल' भी कहा जाता है।

यह कहानी भी मोहब्बत की है, पर एक ट्विस्ट के साथ

आगरा के ताज की तरह, इस मकबरे की नींव भी मोहब्बत पर ही रखी गई थी। इसे बीजापुर (उत्तरी कर्नाटक) के सुल्तान, इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय, ने अपनी बेगम ताज सुल्ताना के लिए बनवाया था। वह चाहते थे कि यह उनकी बेगम का आखिरी आरामगाह बने। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, बेगम से पहले सुल्तान ही चल बसे और उन्हें ही यहां सबसे पहले दफनाया गया।

तो इसे 'काला ताजमहल' क्यों कहते हैं?

अब आप सोच रहे होंगे कि क्या यह सच में काले रंग का है? दरअसल, यह आगरा के ताज की तरह सफेद संगमरमर से नहीं, बल्कि गहरे भूरे रंग के बेसाल्ट पत्थर से बना है। इसी पत्थर के गहरे रंग की वजह से इसे 'काला ताज' का नाम मिला है।

क्या है इस जगह में खास?

यह सिर्फ एक मकबरा नहीं, बल्कि एक पूरा परिसर है जिसमें दो खूबसूरत इमारतें हैं- एक मकबरा और एक मस्जिद। बीच में एक सजावटी तालाब है, जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है।

  • शानदार वास्तुकला: इसकी बनावट में फारसी वास्तुकला की झलक दिखती है, जिसमें ऊँची मीनारें और गुंबद शामिल हैं।
  • कलाकारी का नमूना: दीवारों, जालीदार खिड़कियों और दरवाजों पर कुरान की आयतें इतनी खूबसूरती से उकेरी गई हैं कि देखने वाला बस देखता रह जाता है।
  • अंदर की सादगी: बाहर से भले ही यह बेहद अलंकृत हो, लेकिन मकबरे के अंदर का हिस्सा बेहद शांत और सादा है।

इस परिसर में सुल्तान और उनकी बेगम के अलावा परिवार के चार और सदस्यों की कब्रें हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है।

तो अगली बार जब आप घूमने का प्लान बनाएं और कुछ अलग और ऐतिहासिक देखना चाहें, तो आगरा के साथ-साथ कर्नाटक के बीजापुर में मौजूद इस 'काले ताज' को अपनी लिस्ट में जरूर शामिल करें। यह आपको इतिहास के उस पन्ने से रूबरू कराएगा, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।