आखिर क्यों B J P को मिला प्रचंड बहुमत, नतीजें बताते हैं ये खास बात

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लखनऊ। भाजपा (B J P) की करिश्माई जीत ने विपक्षी दलों के जुबान बंद कर दिए हैं। चुनाव के पहले भाजपा छोड़ने वाले नेता भी जनता के जनादेश को सिर आंखों पर लेकर चुप हैं। अब 85 और 15 प्रतिशत के आंकड़ों की बात भी नहीं हो रही है, जो स्वामी प्रसाद मौर्या ने उठाया था। सीएम योगी के 80 और 20 प्रतिशत का ही बयान अंत में नतीजों में दिखा। नतीजों पर नजर डालें तो चुनाव में कुछ खास समीकरण उभरे। जिनकी वजह से भाजपा को फायदा मिला।B J P - Uttar Pradesh Assembly election results

मायावती के नरम रूख की वजह से छिटके बेस वोटर

बसपा समर्थकों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष मायावती का भाजपा (B J P) के प्रति नरम रूख की वजह से दलित वोट छिटक गया। अपने बयानों में मायावती कभी भी भाजपा के उपर खुलकर हमलवार नही रहीं, बल्कि उन्होंने सपा-गठबंधन पर ही हमला बोला। उनके इस रूख की वजह से दलित वोटरों में भाजपा के प्रति सहानुभूति की लहर उठी और उस वर्ग ने कमल पकड़ना ज्यादा बेहतर समझा। राबर्टसगंज विधानसभा में ऐसा ही हुआ। दलित वोटरों के साथ यदि बसपा ब्राहमण वोटरों को लामबंद करती तो हाथी को ही विजय मिलती। पर दलितों की भाजपा के प्रति सहानुभूति की लहर ने ऐन चुनाव के पहले सपा-गठबंधन का खेल बिगाड़ दिया। (Uttar Pradesh Assembly election results)

ब्राहमणों की नाराजगी की चर्चा आधारहीन

चुनाव आचार संहिता लागू होने के पहले प्रदेश में ब्राहमण वोटरों के नाराजगी की खूब चर्चा थी। सभी दलों ने उन्हें मनाने के उपाय भी करने शुरू किए। पर सोनभद्र सीट पर भाजपा (B J P) की जीत यह संकेत देता है कि ब्राहमण वोटरों ने भाजपा की ही राह चुनी, क्योंकि इस सीट पर ब्राहमण वोटरों का दबदबा है और जनादेश तय करने में उनकी भूमिका अहम मानी जाती है। सपा ने पूर्व विधायक रमेश चंद्र दुबे को प्रत्याशी इसी रणनीति के तहत बनाया था। ताकि ब्राहमण वोटरों का उन्हें साथ मिले। नतीजे बताते हैं कि ऐसा नहीं हुआ। यह सीट भाजपा के खाते में गयी। जिसने ब्राहमण वोटरों के भाजपा के पक्ष में जाने के समीकरणों पर मुहर लगा दी है। (Uttar Pradesh Assembly election results)

लखीमपुर खीरी कांड का असर नहीं

बीते अक्टूबर माह में लखीमुपर खीरी में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्र पर प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गाड़ी चढाने का आरोप लगा। ऐन मतदान के दिन उनकी जमानत भी हुई। चुनाव के पहले व दूसरे चरण में विपक्ष ने इसको प्रचारित भी किया। अनुमान लगाया जा रहा था कि खीरी में इस घटना की वजह से भाजपा (B J P) को नुकसान हो सकता है। अब जब भाजपा ने लखीमपुर की सभी सीटों पर विजय पायी है। इससे यह समझा जा सकता है कि किसानों को कुचलने वाली घटना को वोटरों ने गंभीरता से कतई नहीं लिया। यह सिर्फ राजनीति से प्रेरित एक बहु प्रचारित वाद था। (Uttar Pradesh Assembly election results)

लगातार तीन बार गठबंधन के प्रयोग फेल

सपा मुखिया अखिलेश यादव के चुनाव पूर्व गठबंधन को जनता ने तीसरी बार नकारा है। सपा का 2017 चुनाव में कांग्रेस और 2019 में बसपा से गठबंधन सफल नहीं रहा। 2022 चुनाव में रालोद समेत पांच छोटे दलों से गठबंधन की हवा निकल चुकी है। इस चुनाव में लोकदल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, अपना दल (कमेरावादी) और महान दल से गठबंधन भी सपा के लिए सुखद संदेश न ला सका। लोकदल का पश्चिमी यूपी में जाट वोटरों के बीच आधार माना जाता है। वर्ष 2017 और 2019 के प्रयोगों के बाद कांग्रेस और बसपा तुरंत सपा से अलग हो गई थीं। (Uttar Pradesh Assembly election results)

यादव और मुस्लिम बहुल इलाकों में भी सेंध

भाजपा (B J P) ने उन सीटों पर भी विजय पायी है। जिन सीटों पर यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका मे हैं। दूसरे चरण और तीसरे चरण में भाजपा को मिले जीत के आंकड़ों में यह साफ दिखता है। हालांकि सातवें चरण में अंबेडकरनगर और आजमगढ की सभी सीटों को सपा ने भी कब्जाया है। (Uttar Pradesh Assembly election results)

किसान आंदोलन पर भारी पड़ा महिला सुरक्षा

पहले चरण की सीटों पर सपा गठबंधन का करिश्मा नजर नहीं आया। किसानों की भारी नाराजगी का मुददा खासा चर्चा में था। इसके बावजूद भाजपा (B J P) ने उस इलाके में सेंधमारी की। यह बताता है कि जाट लैंड में किसानों आंदोलन एक स्वायत्त संघर्ष था। किसी दल को किसानों ने इसका क्रेडिट नहीं दिया। इसके अलावा उस इलाके में महिला सुरक्षा का मुददा सभी समीकरणों पर भारी पड़ गया।  (Uttar Pradesh Assembly election results)

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