आज 26 दिसंबर है । एक बार फिर राजनीति के बाजार में हलचल है, इस बार पूर्वोत्तर राज्यों से ‘सियासी सौदे’ की आहट सुनाई दे रही है। बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले आपको बता दें कि आज नेताओं में अपने फायदे और स्वार्थ के लिए ‘दलबदल नीति अपनाना एक फैशन बनता जा रहा है’।
यही वजह है कि आज की राजनीति में यह नया चलन खूब सफल भी हो रहा है । अब बात आगे शुरू करते हैं । अभी पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की सियासत को ‘डगमगाने’ वाले भाजपा के कद्दावर नेता और गृहमंत्री अमित शाह एक बार फिर ‘सियासी मिशन’ पर पूर्वोत्तर के राज्यों में निकले हैं । ‘इस बार शाह दो दिन यानी आज और कल असम व मणिपुर में भगवाकरण की सियासत को और तेज करेंगे’।
कोरोना महामारी और खराब स्वास्थ्य के चलते शाह की राजनीति में सक्रियता धीमी पड़ गई थी। लेकिन अब ‘भाजपा के सबसे कुशल माने जाने वाले रणनीतिकार ने अगले साल कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए अभी से शह-मात का खेल खेलना शुरू कर दिया हैै’।
अमित शाह के इस दांवपेच के बाद ममता बनर्जी बुरी तरह तिलमिलाई हुईं हैं । इस दौरान असम में 2021 विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस समेत कई विपक्षी विधायकों और नेताओं के भाजपा में शामिल होने की संभावना है। अपनी यात्रा के दौरान अमित शाह पार्टी नेताओं के साथ बैठक करेंगे और आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी की समीक्षा करेंगे ।
आपको बता दें कि भाजपा उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण बयान भी दिया था । पांडा ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में हाल ही में कई विपक्षी विधायक पार्टी में शामिल हुए हैं, यह पूरे देश में हो रहा है और असम में भी होगा। कई बडे़ विपक्षी नेता हमारे संपर्क में हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में अप्रैल में चुनाव होने हैं और कांग्रेस के कई नेता भाजपा में शामिल होने को तैयार हैं।
असम में होने जा रहे अगले वर्ष विधानसभा चुनाव को लेकर अमित शाह का यह दौरा विकास की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है । शाह गुवाहाटी में एक नए मेडिकल कॉलेज की आधारशिला भी रखेंगे। शहर में यह दूसरा मेडिकल कॉलेज होगा। इसके साथ ही गृहमंत्री और भी कई विकास कार्यक्रमों को अंतिम रूप देंगे।
सत्ता तक पहुंचने के लिए राजनीतिक दल सभी उसूल मर्यादा तोड़ सकते हैं । इस राजनीतिक के खेल में कोई किसी का साथी-सहयोगी नहीं है। शुक्रवार को राजनीतिक गलियारे में सबसे अधिक चर्चा अपनों में ही सेंध लगाने की रही। भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में अपने ही सहयोगी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के छह विधायक अरुणाचल प्रदेश में अपने पाले में शामिल कर लिए। 60 सदस्यों वाली अरुणाचल विधानसभा में अब जेडीयू का सिर्फ एक विधायक रह गया है।
बता दें कि पीपल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल का भी एक विधायक बीजेपी में शामिल हुआ है। राज्य विधानसभा में इसके साथ ही बीजेपी के 48 विधायक हो गए हैं। जेडीयू के जो विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं उनमें हेयेंग मंग्फी, जिकके ताको, डोंगरू सियनगजू, तालेम तबोह, कांगगोंग ताकु और दोरजी वांग्दी खर्मा शामिल हैं।
हैरान करने वाली बात ये है कि जेडीयू और भाजपा अरुणाचल में साझेदार नहीं हैं और राज्य में नीतीश कुमार की पार्टी विपक्ष में है, लेकिन यह पेमा खांडू सरकार का समर्थन करती है। यहां हम आपको बता दें कि जेडीयू को पिछले साल अरुणाचल प्रदेश में राज्य पार्टी का दर्जा मिला था।
अरुणाचल में 2019 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू 15 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 7 सीटों पर जीत दर्ज कर सभी सियासी पंडितों को चौंका दिया। बीजेपी 41 सीटों के बाद जेडीयू अरुणाचल में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। भारतीय जनता पार्टी की इस सेंधमारी पर जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू को तोड़े बिना भी बीजेपी की सरकार सहजता से चल रही थी। जेडीयू प्रवक्ता त्यागी ने अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी के कदम को गैर दोस्ताना बताते हुए आपत्ति दर्ज की है।