एनडीए का सबसे पुराना घटक दल शिरोमणि अकाली दल भाजपा सरकार के खिलाफ विरोध में उतरना सियासी पंडितों को भी समझ नहीं आया । अकाली दल कोटे की हरसिमरत कौर बादल ने गुरुवार को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया । सबसे बड़ी बात यह रही कि उनका इस्तीफा केंद्र सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ने आनन-फानन में स्वीकार भी कर लिया ।
कौर के ‘अचानक दिए गए इस्तीफे’ पर कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को गले नहीं उतरा। ऐसे ही पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सरकार ने भी अकाली दल को किसानों के नाम पर सियासत करने के आरोप लगाए हैं । ‘अमरिंदर सिंह ने अकाली दल से पूछा है कि अभी तक पंजाब में किसान सड़कों पर आंदोलन कर रहे थे, तब आप कहां थे’ ।
बता दें कि पंजाब में लाखों की संख्या में किसान पिछले कई दिनों से भाजपा सरकार के कृषि विधेयक कानून के विरोध में सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करने में जुटे हुए हैं । ‘पंजाब में किसानों के बीच अकाली दल की खिसकती जमीन के बीच शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने हरसिमरत कौर को मोदी कैबिनेट से अलग कर यह बताने का प्रयास किया है कि सबसे बड़े हम ही हैं किसानों के रहनुमा’ । अकाली दल की तरफ से मोदी सरकार में हरसिमरत कौर बादल ही एकमात्र कैबिनेट मंत्री थीं ।
पंजाब में अकाली दल का राजनीतिक प्रभाव भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा है और पंजाब की सियासत किसानों के मुद्दे पर ही सत्ता पर पहुंचने के लिए राजनीतिक दलों में सबसे मुख्य मुद्दा मानी जाती है । गुरुवार को जब भाजपा सरकार ने लोकसभा से कृषि विधेयक पारित करवाया तब उसी दौरान लोकसभा में अकाली दल प्रमुख सुखबीर बादल ने कहा कि मोदी सरकार से उनकी पार्टी की मंत्री इस्तीफा दे देंगी । इसके तुरंत बाद केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफे का एलान कर दिया ।
‘कौर के इस्तीफे के बाद भाजपा सरकार ने जैसे पहले ही तैयारी कर रखी हो’ । अकाली दल ने मोदी सरकार से बाहर आने का एलान तो कर दिया, लेकिन एनडीए से बाहर निकलने का फैसला पार्टी ने अभी नहीं लिया है ।
पंजाब-हरियाणा के किसानों का इस बिल को लेकर केंद्र सरकार के प्रति जबरदस्त आक्रोश बना हुआ है । कृषि विधेयक के खिलाफ पंजाब के किसान सड़क पर हैं । किसान इतने आंदोलित हैं कि उन्होंने चेतावनी दी है कि जो भी सांसद इन बिलों के साथ होगा, उसे राज्य में घुसने नहीं दिया जाएगा ।
पंजाब में कांग्रेस इस मुद्दे पर किसानों और किसान संगठनों का सहयोग हासिल करने के मामले में अकाली दल को काफी पीछे छोड़ चुकी है । केंद्र की भाजपा सरकार के कृषि विधेयकों का अगर अकाली दल विरोध नहीं करती तो जाहिर है कि पंजाब में कांग्रेस की कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार को सबसे ज्यादा फायदा होता ? ‘हरसिमरत के इस्तीफे को अकाली दल की मजबूरी से भी जोड़कर देखा जा रहा है, क्योंकि किसानों से जुड़े बिलों के विरोध के चलते आने वाले चुनावों में किसानों का वोटबैंक सीधे कांग्रेस के खाते में जा सकता था’।
दरअसल, अकाली दल ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है, जब पंजाब और हरियाणा के किसानों में कृषि से जुड़े इन विधेयकों के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा है । कृषि बिल को लेकर किसान संगठनों के द्वारा कहा जा रहा है कि किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, अध्यादेश इसे भी खत्म कर देगा । यहां हम आपको बता दें कि पंजाब में किसान तीन महीने से इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं ।
कांग्रेस ने हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद कहा कि यह अकाली दल और भाजपा की मिलीभगत है । कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अकाली दल को प्रतीकात्मक दिखावे से आगे बढ़कर सच के साथ खड़े होना चाहिए, जब किसान विरोधी अध्यादेश मंत्रिमंडल में पारित हुए तो हरसिमरत ने विरोध क्यों नहीं किया? ‘सुरजेवाला ने कहा कि हरसिमरत पंजाब के किसानों से अगर इतना ही लगाव है तो लोकसभा से इस्तीफा क्यों नहीं देती हैं’ ।
‘यही नहीं सुरजेवाला ने कहा कि अकाली दल मोदी सरकार से अपना समर्थन वापस क्यों नहीं लेता है’ । रणदीप सुरजेवाला ने हरसिमरत कौर के इस्तीफे को ‘नाटक’ करार दिया है । बता दें कि विरोध के बीच किसानों से जुड़े दो बिल लोकसभा में पास हो गए । कांग्रेस के सदस्यों ने इसका विरोध करते हुए सदन से वॉकआउट कर गए । उसके बाद कांग्रेसियों ने विधेयक के खिलाफ संसद भवन में धरना दिया । कांग्रेस सांसदों का कहना है कि यह काला कानून है ।
गौरतलब है कि मोदी सरकार ने जो दो बिल पास किए हैं वे इस प्रकार हैं, कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक और कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक लोकसभा से पारित करा लिया है, अब इसे राज्यसभा में पास होना बाकी रह गया है