श्रीराधाजी प्रेमिका के साथ-साथ पत्नी भी थी भगवान श्रीकृष्ण की, वटवृक्ष दे रहा है प्रमाण

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मथुरा। मथुरा जिले के गांव मांट क्षेत्र के भांडीरवन में द्वापरयुग से विराजमान वटवृक्ष आज भी इस बात का प्रमाण दे रहा है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा की शादी का। वैसे तो मथुरा स्वयं ही योगीराज श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के साथ-साथ लीलास्थली भी मानी जाती है। जहां उनकी लीलाओं के तमाम प्रमाण देखे जा सकते है। लेकिन श्रीकृष्ण की आदिशक्ति श्रीराधाजी है जिनकी बिना अनुमति के आप श्रीकृष्ण की कृपा नहीं पा सकते है।

Shri radha lord shri Krishna

विष्णु पुराण में मथुरा के इस गांव का जिक्र

श्रीराधा-रानी श्रीकृष्ण की प्रेमिका के तौर पर ही जानी जाती है, लेकिन विष्णु पुराण में मथुरा के इस गांव का जिक्र है जहां बाल अवस्था में श्रीराधारानी का विवाह श्रीकृष्ण से स्वयं ब्रह्माजी ने कराया था। आज भी नवविवाहित जोड़े यहां श्रीराधाजी और श्रीकृष्ण का आशीर्वाद लेने के लिए भांडीरवन आते हैं। लेकिन कोरोना काल के चलते इस वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या कम नजर आई।

भांडीर वन ब्रज के 137 प्राचीन वनों में से एक

भांडीर वन ब्रज के 137 प्राचीन वनों में से एक है, मथुरा से करीब तीस किलोमीटर दूर मांट के गांव छांहरी के समीप यमुना किनारे भांडीरवन है। करीब छह एकड़ परिधि में फैले इस वन में कदम्ब, खंडिहार, हींस आदि के प्राचीन वृक्ष हैं। जंगली जीवन में मोर, कौआ, कबूतर और क्षेत्र के अन्य छोटे पक्षी शामिल हैं। भांडीरवन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां श्रीराधा कृष्ण की एक अनुपम मूर्ति विराजमान है, यह मूर्ति खास इसलिए है क्योंकि पूरे विश्व में केवल यही एक मात्र मूर्ति है जिसमें श्रीकृष्ण श्रीराधा के मांग में संदूर लगाते हुए देखे जाते हैं। इसके अलावा यहां श्री राधा-कृष्ण एक दूसरे को वरमाला पहनाते हुए भी देखे जाते है एवं श्रीगर्ग संहिता के कथानुसार तथा विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्माजी जिन्होंने श्री राधा-कृष्ण का विवाह करवाया था, पुरोहित रूप में विराजमान है। यहां एक मूर्ति ऐसी भी है जहां राधारानी का कद लम्ब होने के कारण ठाकुरजी अपनी पैरों की उंगलियों पर खड़े होकर राधारानी की मांग भर रहे हैं।

वटवृक्ष द्वापर युग से यहां मौजूद

इसी वन में जहां प्राचीन काल का वटवृक्ष द्वापर युग से यहां मौजूद है, इस वृक्ष के नीचे स्वयं ब्रह्मा जी ने भगवान कृष्ण और राधा जी की शादी बाल अवस्था में संपन्न कराई थी, कहा जाता है कि भांडीरवन में एक वट वृक्ष है, इस वट वृक्ष की जड़ें 10 किलोमीटर के दायरे में फैली हुई हैं। इसी वट वृक्ष के नीचे ब्रह्मा जी ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी का विवाह संपन्न कराया था। भांडीरवन में वटवृक्ष द्वापर युग से ही वहां है, विष्णु पुराण में भी इस वट वृक्ष का जिक्र किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी के प्रेम की कथाएं कई शास्त्र पुराणों में लिखी हुई हैं, लेकिन विवाह के संबंध में मात्र विष्णु पुराण में जिक्र किया गया है। इस स्थान के दर्शन करने के लिए हर रोज सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। यहां आकर मन की शांति और नवविवाहित जोड़े भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। फिलहाल वैश्विक महामारी के चलते इस मंदिर में इक्का-दुक्का ही श्रद्धालु दर्शन करने आ रहे हैं।

एक ही वट वृक्ष में से राधा-कृष्ण निकले

स्थानीय लोगों के अनुसार द्वापर युग का यह वट वृक्ष विशाल रूप में फैला हुआ है. यह वट वृक्ष दो रंगों में है। एक सांवला कृष्ण रूपी और दूसरा हिस्सा गोरा राधा रूपी। शादी में जिस तरह वर-वधु को गठजोड़ा पहनाया जाता है, उसी तरह वृक्ष पर जड़ों से गठजोड़ा बना हुआ है।

इस वृक्ष के नीचे ग्वालबालों के साथ कृष्ण करते थे भोजन

मान्यताओं के अनुसार भांडीरवन में वट वृक्ष के नीचे हर रोज कृष्ण अपने ग्वालबालों के साथ बैठकर भोजन करते थे, साथ ही कृष्ण अपनी लीलाओं से ग्वालबालों को मंत्र-मुग्ध कर देते थे।

भांडीरवन में विकास कार्य

राज्य सरकार द्वारा तीर्थ विकास परिषद द्वारा भांडीरवन में 5 करोड़ की लागत से विकास कार्य कराया गया है, मंदिर में दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए छांव में बैठने की व्यवस्था और सौंदर्यीकरण कराया गया।

राधा-कृष्ण का कुदरती हस्त मिलन

मंदिर के पुजारी सोनू पंडित ने बताया कि यह द्वापर युग का वट वृक्ष का पेड़ है, स्वयं ब्रह्मा जी ने राधा रानी और कृष्ण भगवान की शादी बाल अवस्था में कराई थी। यह वृक्ष उसी समय का है, जब द्वापर युग में शादी हुई थी। इस तरह शादी के समय चार खंभे लगाए जाते हैं। यहां चार पेड़ लगे हुए हैं, जो कुदरती गठजोड़ जैसा बनाते हैं। उसी तरह पेड़ की जड़ें भीं गठजोड़ा बनाती हैं। यहां कुदरती हस्त मिलन भी देखा जा सकता है। राधा कृष्ण एक दूसरे से हाथ मिला रहे हैं। यहां जो भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, उनकी मन की शांति और सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। यह पवित्र भूमि है, जहां राधा-कृष्ण श्याम सुंदर का विवाह स्वयं ब्रह्मा जी ने बाल अवस्था में संपन्न कराया था।

किताबों में पढ़ा था जिसका प्रमाण यहां देखने को मिला है

दर्शानार्थी इन्द्र शर्मा ने बताया कि ब्रह्मा जी ने इस वन के अंदर राधा रानी और भगवान कृष्ण का विवाह संपन्न कराया था, मैंने किताबों में पढ़ा था और इस स्थान के दर्शन करने का अभिलाषी था। जानकारी करने के बाद मैं यहां मथुरा पहुंचा और इस वन के दर्शन किए जहां राधा-कृष्ण का विवाह स्थल बना हुआ है। यहां जो भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं, उनकी मन की शांति और सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

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