अयोध्या विवादित ढांचा विध्वंस मामले के फैसले की तारीख नजदीक , सभी आरोपितों को मौजूद रहने का आदेश

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लखनऊ, 16 सितम्बर, यूपी किरण। 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में हुए विवादित ढांचा विध्वंस मामले में सीबीआई की अदालत 27 साल बाद फैसला सुनाएगी। यह फैसला 30 सितंबर को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसके यादव द्वारा सुनाया जाएगा।

अदालत ने आदेश दिया है कि सभी आरोपितों को फैसला सुनने के लिए अदालत में मौजूद रहना होगा। सीबीआई ने केस के परीक्षण के दौरान 351 गवाह और लगभग 600 दस्तावेजी सुबूत कोर्ट में पेश किए।

आपको बता दें कि अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे लाल कृष्ण आडवाणी समेत पूर्व राज्यपाल और यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह, भाजपा नेता विनय कटियार, पूर्व केंद्रीय मंत्री और मध्य प्रदेश की सीएम रहीं उमा भारती भी आरोपी हैं।  ने इस मामले में सीबीआई ने 49 आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी, जिसमें से 17 लोगों की मौत हो चुकी है।

सीबीआई के वकील ललित सिंह ने बताया कि अदालत ने बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद एक सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने लखनऊ में विवादित ढांचा विध्वंस मामले की सुनवाई करने वाली विशेष सीबीआई अदालत की समय सीमा को 30 सितंबर तक बढ़ा दिया था। अयोध्या मामले में फैसला सुनाने की शीर्ष अदालत की समय सीमा 31 अगस्त को समाप्त हो गई थी।जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई 2019 को अयोध्या मामले में आपराधिक मुकदमे को पूरा करने के लिए छह महीने की समय सीमा बढ़ा दी थी। साथ ही अंतिम आदेश के लिए नौ महीने की अतिरिक्त समय सीमा भी निर्धारित की थी।

इस वर्ष 19 अप्रैल को आदेश सुनाने की समय सीमा भी समाप्त हो गई और पुनः विशेष न्यायाधीश ने छह मई को शीर्ष अदालत को पत्र लिखकर समय बढ़ाने की मांग की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आठ मई को 31 अगस्त तक की नई समय सीमा जारी की और तब तक फैसला सुनाने के निर्देश दिए थे। हालांकि, अगस्त में शीर्ष अदालत ने फिर से 30 सितंबर तक अंतिम फैसला देने के लिए समय सीमा बढ़ा दी थी।

जानिए क्या है पूरा मामला

हिंदू पक्ष का दावा था कि अयोध्या में विवादित ढांचा का निर्माण मुगल शासक बाबर ने 1528 में श्रीराम जन्मभूमि पर बने रामलला के मंदिर को तोड़कर करवाया था, जबकि मुस्लिम पक्ष का दावा था कि बाबरी मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाई गई थी। वर्ष 1885 में पहली बार यह मामला अदालत में पहुंचा था।

भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 90 के दशक में राम रथ यात्रा निकाली और तब राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ा। छह दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचा तोड़ दिया और तबसे ही यह मामला कोर्ट में चल रहा है।

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