हमारे देश भारत में छह ऋतुएं बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, हेमन्त ऋतु और शिशिर ऋतु होती हैं। इसमें बसंत ऋतु का मौसम अधिक सुहावन और मनभावन होता है। इसलिए इसे ऋतुराज भी कहा जाता है। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु की शुरूआत होती है। खेतों में सरसों के फूल सोने जैसे चमकते हैं। खेतों में जौ और गेहूँ की बालियाँ हवाके साथ इठलाती नजर आती हैं। आमों के पेड़ों में बौर आ जाते हैं। हर तरफ़ मंडराती रंग-बिरंगी तितलियों को देखकर मन आह्लादित हो उठता है। इसीलिए इसे हर्ष-उल्लास का पर्व या प्रेम पर्व भी कहा जाता है।
बसंत के नाम से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। प्रकृति के साथ तारतम्य बनने लग जाता है। न शीत और न ही गर्मी। पशु-पक्षी से लेकर पूरी धरा पर बसंत की खुशी नयी उर्जा के रुप में दिखाई पड़ने लगती हैं। ऋतुराज के स्वागत में प्रकृति में मनोहारी बदलाव होते हैं। पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्व माने जाने वाले जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। प्रकृति पुनः नूतन श्रृंगार करती है। टेसू के दिल सुर्ख लाल हो उठते हैं। सरसों के फूल झूमकर – झूमकर कर गीत गाने लगते हैं। कोयल की कुहू-कुहू के स्वर भंवरों के प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। पूरा वातावरण मादकता से सरोबार हो उठता है। प्रकृति अंगड़ाइयां लेती नजर आती है।
सच कहा जाए तो बसंत प्रकृति के नूतन श्रृंगार का पर्व हैं। प्रेम और उल्लास का उत्सव है। इस समय प्रकृति अपने निखार पर होती है। पूरी प्रकृति पीली चादर ओढ़े मदमस्त होकर झूम रही होती है। नवयौवन की अनुभूति इसी ऋतु में होती है। सरसइया के फुलवा झरइ लागइ, फागुन में बाबा देवर लागा जैसे मस्तीभरे गीतों के स्वरों से प्रकृति उन्मादी हो जाती है। प्रकृति नवश्रृंगार से आनंदित मनुष्य मन भी श्रृंगारिक हो उठता है। इन दिनों पीली सादे में लिपटी स्त्रियों के मुख की मुस्कान देखते ही बनती है। पुरुषों का उत्साह तो देखते ही बनता है। शायद ही किसी मौसम की रुमानियत के इतने गुण गाये गए होंगे, जितने बसंत के गाये गए हैं। यही तो है प्रेम का उत्सव अर्थात मदनोत्सव।