बिहार विधानसभा चुनाव: इस पार्टी की दावेदारी से महागठबंधन में मची हलचल, कहीं चुनाव से पहले…

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बेगूसराय, 10 सितम्बर। बिहार विधानसभा चुनाव तय समय पर होगा इसकी घोषणा चुनाव आयोग ने कर दी है। चुनाव की तारीखों का एलान कभी भी हो सकता है। सभी दलों के दावेदार पटना से लेकर दिल्ली तक गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। बायोडाटा जमा कर, अपने-अपने पक्ष के वरीय नेता के माध्यम से आलाकमान तक बात पहुंचा रहे हैं।

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वहीँ ऐसे में बेगूसराय की सातों सीट पर कशमकश की स्थिति है। मगर इस समय सबसे चर्चा में  है बछवाड़ा विधानसभा क्षेत्र। क्षेत्र के विधायक रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता रामदेव राय का पिछले दिनों निधन हो जाने के बाद इस सीट पर सीपीआई जोरदार दावेदारी दे रही है।

बुधवार की शाम रामदेव राय के द्वादश कर्म पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में जुटी बिहार कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की भीड़ ने यह एहसास करा दिया की रामदेव राय भले ही अब नहीं रहे लेकिन कांग्रेस इस सीट पर हर हाल में दावेदार है और रामदेव राय के पुत्र युवा कांग्रेस के प्रदेश महासचिव शिव प्रकाश उर्फ गरीबदास प्रत्याशी होंगे।

कांग्रेस बछवाड़ा और बेगूसराय ही नहीं, मटिहानी सीट पर भी अपना दावा ठोक रही है। संभव है कि बेगूसराय में सीट के बंटवारे में कांग्रेस महागठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में रहे और तीनों सीटों पर उसकी दावेदारी हो।  कांग्रेस की बिहार प्रभारी समेत तमाम नेताओं की बछवाड़ा में जुटी भीड़ और ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में तीन सीट पर कांग्रेस की दावेदारी के बाद यहां गठबंधन में भारी हलचल मच गई है।

अंदर ही अंदर मची हलचल

कांग्रेस से टिकट की आशा रखने वाले अन्य प्रत्याशी ही नहीं राजद और सीपीआई के दावेदार एवं उनके नेतृत्वकर्ता में भी गहमागहमी बढ़ गई है। सबके अपने दावे, अपने- अपने फार्मूले हैं, अंदर ही अंदर मची हलचल ने साबित कर दिया है कि बछवाड़ा सीट पर प्रत्याशी तय करना दोनों गठबंधनों के लिए बहुत ही मुश्किल है।

इसमें होने वाली चूक लंका में विभीषण  पैदा कर पूरी लंका को खत्म कर देगी। टिकट से वंचित होने की आशंका के आधार पर नेता अलग खिचड़ी पकाने में जुटे हुए हैं। यहां सीपीआई पूर्व विधायक अवधेश राय को मैदान में उतार सकती है। एनडीए में यह सीट लोजपा के हिस्से में जाने की पूरी-पूरी संभावना है तथा लोजपा से पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष इंदिरा देवी या वरिष्ठ नेता विनय कुमार सिंह यहां सेे प्रत्याशी हो सकते हैं।

भाजपा के नेता इस सीट को भाजपा के कोटे में डलवाने केे लिए काफी प्रयासरत हैं तथा करीब आधे दर्जन उम्मीदवार लगातार क्षेत्र से लेकर आलाकमान तक अपनी दावेदारी मजबूत कर रहेे हैं।  2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के रामदेव राय को 73983 (45.83 प्रतिशत), लोजपा के अरविन्द सिंह को 37052 (22.95 प्रतिशत) तथा सीपीआई के अवधेश राय को 28539 (17.68 प्रतिशत) वोट मिले थे।

बाद के दिनों में भाजपा की स्थिति यहां काफी मजबूत हुई तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में वामपंथ और कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा के गिरिराज सिंह, सीपीआई के कन्हैया कुमार से 45670 वोट से आगे रहे। फिलहाल यह देखना रोचक होगा कि एनडीए एवं महागठबंधन में यह सीट किस दल को मिलती है। महागठबंधन में यह सीट कांग्रेस को मिलती है या सीपीआई को अथवा राजद को। जानकारों का मानना है कि टिकट नहीं मिलने से नाराज नेता अलग खिचड़ी भी पका सकते हैं तथा ऐसे नेताओं की भूमिका चुनाव में असर डालेगी।

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