Up Kiran, Digital Desk: बिहार में हुए लोकसभा उपचुनावों के पहले चरण में जिस तरह से लोगों ने बढ़-चढ़कर वोट किया है, उसने राज्य की सियासत में एक नया तूफान ला दिया है। पोलिंग बूथों पर लगी लंबी-लंबी कतारें देखकर जहां एक तरफ सत्ताधारी एनडीए (NDA) गठबंधन इसे अपने विकास के कामों पर जनता की मुहर बता रहा है, वहीं दूसरी तरफ, राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले प्रशांत किशोर (PK) ने इसे "बदलाव की लहर" करार दिया है।
एक ही घटना पर इन दो बिल्कुल अलग-अलग बयानों ने बिहार की राजनीति को और भी दिलचस्प बना दिया है। तो चलिए समझते हैं कि इस रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के आखिर क्या मायने निकाले जा रहे हैं।
प्रशांत किशोर का विश्लेषण: "यह उत्साह नहीं, गुस्सा है!"
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, जो इन दिनों अपनी 'जन सुराज' पदयात्रा पर हैं, उनका मानना है कि जब भी वोटिंग सामान्य से बहुत ज्यादा होती है, तो यह मौजूदा सरकार के लिए खतरे की घंटी होती है।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा, "यह जो भारी भीड़ वोट देने निकली है, यह किसी नेता या पार्टी के समर्थन में नहीं, बल्कि मौजूदा व्यवस्था को बदलने के लिए निकली है। यह बदलाव का संकेत है।"
पीके का तर्क है कि यह वोटिंग प्रतिशत जनता के उस गुस्से को दिखाता है जो बेरोजगारी, महंगाई और बदहाली को लेकर उनके अंदर भरा हुआ है। उनका मानना है कि यह एक मजबूत 'सत्ता विरोधी लहर' (anti-incumbency) है, और जनता अब सिर्फ बदलाव चाहती है, चाहे वह किसी भी पार्टी से आए।
एनडीए का दावा: "यह हमारे सुशासन का आशीर्वाद है"
वहीं दूसरी तरफ, सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके एनडीए के साथी इस बंपर वोटिंग को अपनी सरकार के अच्छे कामों का इनाम मान रहे हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद बिहार की जनता, खासकर महिलाओं और युवाओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि उनका यह उत्साह लोकतंत्र की जीत है। JDU और BJP के नेताओं का मानना है कि लोगों ने उनके विकास के मॉडल, जैसे कि शराबबंदी, लड़कियों को शिक्षा और बेहतर कानून-व्यवस्था के पक्ष में वोट किया है। उनका कहना है कि यह "प्रो-इंकम्बेंसी" यानी सरकार के समर्थन में लहर है, जहां लोग चाहते हैं कि विकास का यह काम आगे भी जारी रहे।
तो सच क्या है?
एक तरफ प्रशांत किशोर हैं जो इसे 'बदलाव का तूफान' बता रहे हैं, और दूसरी तरफ नीतीश कुमार हैं जो इसे 'विकास पर विश्वास' कह रहे हैं। एक ही घटना पर दो इतने अलग नजरिए ने नतीजों से पहले ही बिहार की राजनीति में सस्पेंस को कई गुना बढ़ा दिया है।
अब यह तो वोटों की गिनती के बाद ही साफ होगा कि बिहार की जनता ने अपना यह रिकॉर्ड तोड़ वोट 'बदलाव' के लिए दिया है या फिर 'विश्वास' को बनाए रखने के लिए। लेकिन एक बात तो तय है - इस बार का जनादेश जो भी होगा, वह बहुत जोरदार होगा और बिहार की आने वाली राजनीति की दिशा तय करेगा।
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