उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार पिछले 48 घंटों से बेचैन है । मुख्यमंत्री रावत के लिए बेचैनी का सबसे बड़ा कारण उनके ही कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत बने हुए हैं ।
‘प्रदेश की राजनीति के अनुभवी और कद्दावर नेताओं में शुमार हरक सिंह रावत अपने बयानों को लेकर हमेशा चर्चाओं में रहे हैं। वे कांग्रेस में रहे हों या भाजपा में उन्होंने अपने बयानों और फैसलों से राजनीति को गरमाए रखा’। एक तरफ जहां सीएम त्रिवेंद्र सिंह वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए थे, इस बीच कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने सियासी बयान देकर मुख्यमंत्री को उलझन में डाल दिया है ।
कई दिनों से सीएम रावत अपने मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भी फैसला नहीं कर पा रहे थे। आइए आपको बताते हैं उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री हरक सिंह रावत का वह सियासी बयान जिसने राज्य में राजनीति को गरमा दिया । शुक्रवार को त्रिवेंद्र सरकार के वन और पर्यावरण मंत्री हरक सिंह रावत ने एलान किया है कि वह वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालांकि, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह राजनीति से संन्यास नहीं लेंगे।
वन मंत्री के इस एलान से उत्तराखंड के सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गरम है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी भी राज्य में अपनी राजनीति सक्रियता बढ़ा रही है । अभी कुछ दिन पहले ही आम आदमी पार्टी के एक कार्यक्रम में कैबिनेट मंत्री हरक सिंह के मंत्रालय में महत्वपूर्ण भूमिका रही थी । तभी से अटकलें लग रही थी कि हरक सिंह रावत और आम आदमी पार्टी के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं ।
अब आपको बताते हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के कैबिनेट मंत्री की नाराजगी का कारण । उत्तराखंड में अंगीकृत किए गए केंद्र के भवन एवं अन्य सन्निर्माण कामगार (रोजगार का विनियमन और सेवा शर्तें) अधिनियम के तहत राज्य में गठित भवन एवं अन्य सन्निर्माण बोर्ड के अध्यक्ष पद से हटाए जाने से कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत खफा हैं।
हम आपको बता दें कि वन एवं पर्यावरण मंत्री हरक सिंह रावत के पास श्रम एवं सेवायोजन मंत्रालय का जिम्मा भी है। श्रम विभाग के अंतर्गत आने वाले भवन एवं अन्य सन्निर्माण बोर्ड के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी वन मंत्री हरक सिंह ही देख रहे थे।
इस बीच शासन ने 20 अक्टूबर को अचानक अधिसूचना जारी वन मंत्री हरक सिंह रावत की जगह अध्यक्ष पद पर श्रम संविदा बोर्ड के अध्यक्ष शमशेर सिंह सत्याल को नियुक्त कर दिया। हालांकि इस कार्रवाई के बाद शुक्रवार कैबिनेट मंत्री ने कहा कि इस बारे में वह पहले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से बात करेंगे, इसके बाद कोई फैसला लेंगे ।हालांकि वह अभी इस मसले पर चुप्पी साधे हैं।
उत्तराखंड की राजनीति में हरक सिंह रावत को जिसकी सत्ता हो उसके ही करीब माना जाता है । वर्ष 2016 में कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार के खिलाफ बगावत कर नौ विधायकों के साथ भाजपा का दामन थामने वाले हरक ने तब सरकार पर संकट ला दिया था। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में वह कोटद्वार सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और जीत हासिल की।
हरक की छवि तेजतर्रार मंत्री की रही है । एक बार फिर वन मंत्री ने भाजपा त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को चुनौती खड़ी कर दी है । एक ओर प्रदेश सरकार कोरोना संकट से उबरने का प्रयास कर रही है और उसके सामने राज्यसभा का चुनाव भी है। बता दें कि 9 नवंबर को एक राज्यसभा सीट के लिए उत्तराखंड में मतदान होंगे।
ठीक ऐसे वक्त में त्रिवेंद्र सरकार के मंत्री हरक सिंह का चुनाव न लड़ने को लेकर आया बयान दबाव की राजनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। लेकिन यह बात कई लोगों को हजम नहीं हो रही है कि सन्निर्माण कर्मकार बोर्ड के अध्यक्ष पद से विदाई की कहानी चुनावी राजनीति के मोड़ पर आकर क्यों अटक गई है? सियासी जानकार इसे राज्यसभा चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। हरक एक तीर से दो निशाने साधना चाह रहे हैं। उनके बयान में एक तरफ उनकी नाराजगी दिखाई दे रही है तो दूसरी तरफ दबाव की सियासत।