उत्तर प्रदेश इलेक्शन में जाति होगी बड़ा फैक्टर, मुस्लिम वोटरों को क्या होगा असर

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यूपी में 2022 इलेक्शन की घोषणा के साथ ही अब यूपी की विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों को लेकर समस्त सियासी पार्टियों में मंथन शुरू हो गया है। यह वह राज्य है जहां अधिकांश सीटों पर पिछड़ा वर्ग और दलितों का दबदबा है। राज्य की कई सीटों पर सवर्णों का भी गहरा प्रभाव है, किंतु यहां उनकी जनसंख्या दलितों से कम और आंकड़ों के मामले में पिछड़े से कम है।

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बीते इलेक्शन में भाजपा को सवर्णों और पिछड़ों के सबसे अधिक वोट मिले थे, जिससे वह 300 के ऐतिहासिक आंकड़े को छू गई थी। इस बार भी भाजपा सवर्णों को पिछड़ों और दलितों को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश कर रही है। यह फॉर्मूला सीटों के बंटवारे में भी देखा जा सकता है। दूसरी तरफ, एसपी व मायावती की पार्टी पहले ही अपने पिछड़े और दलित मतदाताओं को अपने साथ होने का दावा करते हुए देख चुकी हैं।

राज्य की 403 विधानसभा सीटों पर जातिगत समीकरणों (caste equations) को नकारा नहीं जा सकता। यही वजह है कि बीजेपी और एसपी दोनों ही छोटे दलों के साथ गठबंधन पर सबसे अधित जोर देते हुए नजर आए हैं।

कितनी है मुस्लिम वोटरों की संख्या

सूबे में जाति समीकरणों के अनुमानित आंकड़े में पिछड़ा वर्ग पहले नंबर पर है। वहीं दूसरे नंबर पर दलित और तीसरे नंबर पर सवर्ण और चौथे नंबर पर मुसलमान बताए जाते हैं। जो अनुमानित आंकड़े सामने आए हैं उनमें ओबीसी वोटरों की तादाद 42 से 45 फीसदी बताई जा रही है।

प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या करीब 21 से 22 % है। वहीं सवर्ण जातियों की अनुमानित संख्या 18 से 20 प्रतिशत है। इसके साथ ही यूपी की राजनीति में कई सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का भी गहरा असर है। यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 16 से 18 % बताई जाती है।

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