जोड़-तोड़ और दल बदलने में माहिर रहे चौधरी अजित सिंह, जानिए इनका राजनैतिक करियर

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मेरठ। अपने राजनैतिक करियर में चौधरी अजित सिंह जोड़-तोड़ करने और दल बदलने में माहिर रहे। अपने चिर प्रतिद्वंदी चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के साथ मिलकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का भी गठन किया तो कांग्रेस से भी सांसद चुने गए। भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा और फिर एकाएक पाला बदल लिया। समाजवादी पार्टी के साथ भी रालोद मुखिया गठबंधन में रहे।
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अमेरिका में इंजीनियर रहे हैं अजित सिंह

रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह राजनीति में आने से पहले इंजीनियर रहे और अमेरिका में लंबा समय गुजारा। 1986 में भारत लौटने के बाद अजित सिंह किसान ट्रस्ट के अध्यक्ष के तौर पर सियासी सफर शुरू किया। दिग्गज नेता हेमवतीनंदन बहुगुणा से विवाद के बाद लोकदल (अ) का गठन करके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 1988 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें जनता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। इसके बाद जनता दल में विलय के बाद राष्ट्रीय महासचिव चुने गए और लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बनें। 1991 में नरसिम्हाराव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को समर्थन देकर केंद्रीय मंत्री बन गए।

कांग्रेस में शामिल होकर सांसद बने

1996 में अजित सिंह कांग्रेस में शामिल हुए और बागपत से सांसद चुने गए। एक साल में ही कांग्रेस से मोहभंग हो गया। अजित सिंह ने लोकसभा से त्यागपत्र देकर कांग्रेस छोड़ दी। 1997 में भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत के साथ मिलकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन करके चुनाव लड़ा। महेंद्र सिंह टिकैत से नाता टूटने के बाद अजित सिंह 1998 का लोकसभा चुनाव हार गए।

2002 में भाजपा के साथ लड़ा विधानसभा चुनाव

राजनीतिक गठजोड़ में माहिर अजित सिंह ने 2002 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा से गठबंधन कर किया। भाजपा से संबंध बिगड़ने पर मायावती सरकार में भी शामिल हुए। मायावती सरकार गिरने के बाद अपने चिर प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह यादव के साथ सरकार में शामिल हो गए।

2004 में सपा के साथ लड़ा लोकसभा चुनाव

2004 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह ने मुलायम सिंह के साथ गठबंधन किया। पश्चिम उत्तर प्रदेश की दस सीटों पर चुनाव लड़कर अपने तीन सांसद जीता पाए। सपा के साथ दोस्ती लंबी नहीं चली और तीसरे मोर्च की पैरोकारी की। 2007 का विधानसभा चुनाव अपने बूते पर लड़ा और चुनाव परिणाम आने से पहले ही मायावती के साथ जाने का ऐलान कर दिया। खुद पूर्ण बहुत हासिल करने वाली मायावती से उनकी बात नहीं बनी।

2009 में भाजपा से मिलकर लड़ा लोकसभा चुनाव

2009 के लोकसभा चुनावों में रालोद मुखिया अजित सिंह को एक बार फिर भाजपा के साथ गठबंधन करना पड़ा। भाजपा का साथ लेकर रालोद अपने पांच सांसद चुनवाने में कामयाब रहा। अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी मथुरा से सांसद चुने गए। चुनाव परिणाम के बाद ही अजित सिंह पाला बदलकर कांग्रेस के साथ चले गए।

2014 में सियासी जमीन खो बैठे

2014 के लोकसभा चुनावों में अजित सिंह खुद बागपत से और उनका बेटा मथुरा सीट से चुनाव हार गए। बागपत सीट पर भाजपा प्रत्याशी डाॅ. सत्यपाल सिंह ने अजित सिंह को तो मथुरा सीट से भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी ने जयंत चैधरी को बुरी तरह से हराया। इसके बाद रालोद मुखिया सियासी बियाबान में खो से गए।

2017 के चुनाव में जीता एक विधायक

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में रालोद का केवल एक विधायक चुनाव जीत पाया। बागपत जनपद की छपरौली सीट से रालोद के सहेंद्र सिंह चुनाव जीते। वह भी बाद में भाजपा में शामिल हो गए और रालोद का विधानसभा में कोई प्रतिनिधि नहीं बचा।

2019 में गठबंधन के बादजूद हार गए चुनाव

अपना सियासी अस्तित्व बचाने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा, सपा और रालोद ने गठनबंधन करके चुनाव लड़ा। इसके बावजूद अजित सिंह को मुजफ्फरनगर और जयंत चौधरी को बागपत से चुनाव हारना पड़ा।
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