चिदंबरम बोले, ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ सिर्फ कागज के टुकड़े पर बेवकूफ बनाने वाले शब्द

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नई दिल्ली, 10 सितम्बर। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के भुगतान को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच खींचतान लगातार जारी है। जहां राज्य सरकारें केंद्र से जीएसटी का बकाया जल्द देने की मांग पर अड़ा है, वहीं केंद्र ने साफ कर दिया है कि उनके पास भुगताने के लिए पर्याप्त धन नहीं है।

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इस बीच पूर्व वित्तमंत्री एवं कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने जीएसटी मुआवजे के अंतर को कम करने को लेकर केंद्र सरकार के ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ को बेवकूफ बनाने वाला शब्द करार दिया है। उन्होंने कहा कि राज्यों को उधार लेने की सलाह देना किसी भी लिहाज से सही नहीं, इससे राज्यों को बोझ बढ़ेगा ही।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने जीएसटी मुआवजे के मुद्दे पर केंद्र पर समस्या का समाधान खोजने के बजाय राज्यों पर भार थोपने का आरोप लगाया। उन्होंने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ‘सरकार का कहना है कि वह राज्यों को जीएसटी मुआवजा के अंतर को पाटने के लिए ‘लेटर ऑफ कम्फर्ट’ देगी, जिससे वो उधार ले सके।

आरबीआई विंडो से उधार लेने के लिए कहा गया

ये सिर्फ कागज के टुकड़े पर बेवकूफ बनाने वाले शब्द हैं, जिनकी कोई कीमत नहीं है।’ उन्होंने कहा कि उधार लेने के केंद्र के विकल्प को राज्यों द्वारा नकारा जाना आवश्यक कदम है। आखिर सारी भरपाई राज्य क्यों करें। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र को संसाधनों को खोजना होगा और राज्यों को धन उपलब्ध कराना ही होगा।

वहीं एक अन्य ट्वीट में कांग्रेस नेता ने कहा कि वर्तमान में राज्यों को नकदी की जरूरत है। केवल केंद्र सरकार के पास संसाधनों को बढ़ाने और राज्यों को जीएसटी मुआवजे में कमी का भुगतान करने के लिए कई विकल्प और लचीलापन है। यदि राज्यों को उधार लेने के लिए मजबूर किया जाता है, तो उन राज्यों द्वारा पूंजीगत व्यय पर कुल्हाड़ी निश्चित ही गिर जाएगी, जो पहले से ही कटौती का सामना कर चुके हैं।

उल्लेखनीय है कि जीएसटी मुआवजे के भुगतान को लेकर केंद्र ने राज्यों के समक्ष दो विकल्प रखे थे। जिसमें पहले विकल्प के तहत राज्यों से कहा गया है कि वे अपने भावी प्राप्तियों को क्षतिपूर्ति उपकर के तहत उधार लें। इसमें वित्तीय बोझ पूरी तरह से राज्यों पर पड़ता है। जबकि दूसरे विकल्प के तहत, राज्यों को आरबीआई विंडो से उधार लेने के लिए कहा गया। यह मुख्य तौर पर बाजार उधार है, केवल इसका नाम अलग है। वहीं इसमें भी संपूर्ण वित्तीय बोझ राज्यों पर ही पड़ता है।

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