नई दिल्ली॥ विश्व में अपनी विस्तारवादी नीति को आक्राम’क ढंग से बढ़ा रहा चाइना हिंदुस्तान के पड़ोसी देशों अपनी मुट्ठी में करने में जुटा है। पाकिस्ता’न शुरू से ही चाइना का पिछलग्गू़ रहा है। वहीं श्री लंका, नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में चाइना ने हालिया सालों में अपने पांव जमाने की कोशिश की है। चाइना के प्रेसिडेंट शी जिनपिंग दो दिन के म्यांमार दौरे पर हैं।
19 वर्षों में किसी नेता का ये पहला म्यांमार दौरा है। हालांकि यह दौरा हिंदुस्तान के लिए कई चिंताओं को बढ़ा सकता है। वो भी तब जब म्यांमार के साथ उसके संबंध बहुत अधिक ठीक नहीं हैं।
चाइना और म्यांमार में बीते 7 दशकों से राजनयिक रिश्ते रहे हैं। इस वक्त दोनों ही देश एक ही मामले में विश्व की आलोचना झेल रही हैं। मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरूद्ध दोनों ही देशों में दमनकारी नीतियों को अपनाया गया है। चाइना ने जहां उइगर मुस्लिमों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा है, वहीं रोहिंग्याओं के साथ म्यांमार का व्यवहार विश्व ने देखा है।
म्यांमार चाइना के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है। चाइना-म्यांमा’र इकोनॉमिक कॉरिडोर में कई प्रोजेक्ट्स के साथ एक बंदरगाह को भी विकसित करने में जुटा है। यह म्यांमार के पश्चिमी तट में बंगाल की खाड़ी में स्थित है।
बंगाल की खाड़ी में चाइना बंदरगाह बनाने में जुटा है। इसके निर्माण के बाद हिंदुस्तान पूरी तरह से चीनी घेरे में होगा। श्री लंका पहले ही अपने हंबनटोटा बंदरगाह को चाइना को 99 सालों की लीज पर दे चुका है। वह अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने में जुटा है। रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर बांग्लादेश और म्यांमार के बीच तनाव के दौरान चाइना ने खुद को मध्यस्थ की भूमिका में प्रस्तुत किया था।