पुराने जूते-चप्पल बेच कर खड़ी की करोड़ों की कंपनी, बराक ओबामा और रतन टाटा भी हैं फैन

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अधिकतर युवा जब पहली नौकरी करते हैं तो वे अपने करियर के शुरुआती पायदान पर होते हैं लेकिन आज हम आपको दो ऐसे दोस्तों के बारे में बताने जा रहे हैं जो मात्र 25 साल की उम्र में पुराने जूते बेचकर करोड़पति बन गए। ये दो युवा बिजनेसमैन है रमेश धामी (Ramesh Dhami) और श्रियांश भंडारी (Shriyansh Bhandari)। इनकी इस सफलता की वजह से बिजनेसमैन रतन टाटा (Ratan Tata) और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा (Barack Obama) जैसे लोग इनके फैन हैं।

old shoes

बताया जाता है कि रमेश धामी जब मात्र 10 साल के थे तो उन्हें फिल्मों में हीरो बनने का ऐसा नशा चढ़ा कि वे घर से से भाग गए थे। ये घटना साल 2004 की है। रमेश धामी उत्तराखंड के पित्थौरागढ़ के रहने वाले थे। घर से भागने के बाद लगभग दो साल तक वे एक शहर से दूसरे शहर के चक्कर काटते रहे। फिर 12 साल की कम उम्र में ही वे मुंबई आ गए। यहाँ एक एनजीओ ने उन्हें संरक्षण मिला।

जूते और चप्पलें बेचने का आइडिया

धामी मुंबई में ही राजस्थान के श्रियांश भंडारी से मिले। श्रियांश ने ही उन्हें पुराने जूते और चप्पलें बेचने का आइडिया दिया। श्रियांश भंडारी का ये आइडिया धामी को काफी पसंद आया। बस फिर क्या था दोनों इस कमा में जी जान से लग गए और मिलकर ग्रीनसोल (Greensole) नामक एक स्टार्टअप शुरू किया। ये कंपनी पुराने जूते और चप्पलों की मरम्मत करती थी फिर उन्हें नया करके कम दामों में बाजार में बेच देती थी।

जल्द ही ग्रीनसोल कंपनी को और भी काम मिलने लगा और वह सफलता की ऊंचाइयां छूने लगी। देखते ही देखते कंपनी ने मात्र छह साल में तीन करोड़ का टर्नओवर पार कर लिया। अच्छा बिजनेस करने के साथ ये कंपनी दान भी करती है। ग्रीनसोल कंपनी अभी तक 14 राज्यों में 3.9 लाख जूते दान में दे चुकी हैं। इसके लिए उन्होंने 65 कंपनियों संग टाई-अप भी कर रखा है।

कंपनी की शुरुआत 2015 में मुंबई के एक छोटे से घर से

गौरतलब है कि ग्रीनसोल कंपनी की शुरुआत 2015 में मुंबई के एक छोटे से घर से हुई थी। आज यह इतनी बड़ी हो गई कि फोर्ब्स और वॉग जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाएं भी इनकी तारीफ़ों के पूल बांध चुकी हैं। हालांकि ये सफर इतना आसान नहीं था। धामी जब पहली बार मुंबई आए थे तो उन्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए घाटकोपर के एक होटल में नौकरी करजनी पड़ी लेकिन उस साल बाढ़ आने की वजह से होटल बंद हो गया था।

ऐसे में उनकी जॉब चली गई और उन्हें रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर कई रातें गुजारनी पड़ी।इस माहौल में धामी को ड्रग्स की बुरी आदत ने भी जकड़ लिया। हद तो तब हो गई जब ड्रग्स की तड़प के चलते वे छोटे-मोटे अपराध भी करने लगे। लेकिन फिर साथी नामक एक एनजीओ धामी के जीवन में फरिश्ता बनकर आया। उसने धामी की लाइफ सुधार दी। बस इसी दौरान उनकी मुलाकात अपने वर्तमान बिजनेस पार्टनर श्रियांश भंडारी से हुई थी।

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