नई दिल्ली: बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) उत्तराखंड के चार प्रमुख धामों में से एक है। हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में बसे इस पौराणिक और भव्य मंदिर (Badrinath Temple) में भगवान श्रीहरि विराजमान हैं। हिमालय की चोटियों के बीच अटल इस पवित्र धाम का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। हर भक्त की यह इच्छा होती है कि वह अपने जीवन में एक बार बद्रीनाथ धाम जरूर जाए। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पहुंचने का रास्ता भी काफी दुर्गम है।
वैसे तो बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Dham) के अंदर कई रहस्य हैं, लेकिन इन्हीं में से एक रहस्य ऐसा है जो आज तक लोगों के जेहन में घूम रहा है। आमतौर पर किसी भी मंदिर में पूजा के समय शंख बजाना अनिवार्य माना जाता है, लेकिन बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) एक ऐसा मंदिर है, जहां कभी भी शंख नहीं बजाया जाता है। दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक और बेहद रहस्यमयी कहानी छिपी है, जिसके बारे में जानकर आप शायद हैरान रह जाएंगे।
इस मंदिर (Badrinath Dham) में शंख नहीं बजाने के पीछे मान्यता है कि एक समय हिमालय क्षेत्र में राक्षसों का बड़ा आतंक था। दैत्य इतना कहर बरपाते थे कि ऋषि न तो मंदिर (Badrinath Temple) में भगवान की पूजा कर पाते थे और न ही अपने आश्रमों में। यहां तक कि वह उन्हें अपना निवाला भी बना लेते थे। राक्षसों के इस क्रोध को देखकर अगस्त्य ऋषि ने मदद के लिए मां भगवती को बुलाया, जिसके बाद माता कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और खंजर से सभी राक्षसों को नष्ट कर दिया।
हालाँकि माँ कूष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए आतापी और वातापी नाम के दो राक्षस भाग गए। इसमें से आटापी मंदाकिनी नदी में छिप गई जबकि वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर छिप गई। ऐसा माना जाता है कि तब से बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) में शंख बजाना प्रतिबंधित हो गया और यह परंपरा आज भी जारी है। (Badrinath Temple)
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