नई दिल्ली॥ BJP की अंदरूनी राजनीति की दृष्टि से दिल्ली विधानसभा इलेक्शन अहम है। वर्ष 2014 के लोकसभा इलेक्शन के बाद करीब 66 महीने में हुए 36 राज्यों के विधानसभा इलेक्शन में ये पहला मौका है जब पीएम मोदी पार्टी का चेहरा नहीं हैं। दिल्ली विधानसभा इलेक्शन पूरी तरह से सीएम अरविंद केजरीवाल बनाम गृह मंत्री अमित शाह हो चुका है।
अहम तथ्य ये है कि शाह ऐसे समय में पार्टी का अघोषित चेहरा बने हैं जब अध्यक्ष के रूप में उनकी भूमिका खत्म हो गई है। दरअसल 2014 के लोकसभा इलेक्शन के बाद अध्यक्ष बनाए गए शाह के कार्यकाल में पार्टी ने 35 राज्यों में विधानसभा इलेक्शन का सामना किया। इनमें से कुछ राज्यों में सीएम ही पार्टी का चेहरा बने।
जबकि अधिकतर राज्यों में पार्टी ने पीएम मोदी को अपना चेहरा बनाया। इनमें मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में पार्टी ने सीएम को ही अपना चेहरा बनाया, जबकि कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा तो दिल्ली में किरण बेदी पर दांव लगाया। हालांकि इन राज्यों के इतर दूसरे राज्यों पार्टी पीएम मोदी को चेहरा बना कर इलेक्शन मैदान में उतरी।
लोकसभा के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा इलेक्शन में पार्टी एक बार फिर से केंद्रीय योजनाओं और पीएम मोदी के नाम पर ही इलेक्शन मैदान में उतरी। स्थानीय नेतृत्व की अलोकप्रियता के कारण आशातीत सफलता नहीं मिलने के बाद दिल्ली इलेक्शन के दौरान ही अध्यक्ष पद से हटने के बावजूद शाह ने इलेक्शन की कमान अपने कंधे पर ले ली।
इस दौरान शाह ने शाहीन बाग में सीएए के विरूद्ध जारी आंदोलन के विरूद्ध अभियान चला कर पूरे इलेक्शन प्रचार को राष्ट्रवाद पर केंद्रित कर दिया। बीते साढ़े पांच साल में ये पहली बार है जब विपक्ष के निशाने पर पीएम मोदी कम शाह अधिक हैं। लोकसभा इलेक्शन के बाद बतौर गृह मंत्री शाह अचानक पार्टी में राष्ट्रवादी चेहरा बन कर उभरे हैं।
जम्मू कश्मीर से धारा 370 निरस्त करने और नागरिकता संशोधन बिल को राज्यसभा में बहुमत के अभाव में भी पारित करा लेने के बाद शाह अचानक पार्टी में हिंदुत्व का नया चेहरा बन कर उभरे हैं। अगर शाह इलेक्शन जिताने में सफल रहते हैं तो पार्टी को हर इलेक्शन में पीएम मोदी को बतौर चेहरा पेश करने की मजबूरी से निजात मिलेगी।