दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। जस्टिस राजीव सहाय एंड लॉ की अध्यक्षता वाली बेंच ने चार हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
पहले यह याचिका चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच के पास लिस्टेड थी। पिछली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की बेंच ने इस याचिका को जस्टिस राजीव सहाय एंड लॉ की अध्यक्षता वाली बेंच को भेज दिया था। पिछले 14 सितंबर की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका का विरोध किया था।
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता है। तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता की मांग नहीं कर सकते। मेहता ने कहा था कि उन्होंने कानून की पड़ताल की है। कोर्ट कानून नहीं बना सकता है।
याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा ने दायर किया हे। याचिकाकर्ता की ओऱ से वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा कहा है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है। याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है।
याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रूप में नहीं देखता है। एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं। उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव करता है।
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकती है। इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है।