धनतेरस पर बन रहा है विष्कुंभ योग, बरसेगी मां लक्ष्मी की कृपा, जानें शुभ मुहूर्त

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डेस्क. इस बार धनतेरस पर विशेष संयोग बन रहा है जो अत्‍यंत शुभ फलदायी है। पंडित दीपक पांडे से जाने इस दिन की पूजा का सर्वश्रेष्‍ठ मुहूर्त।

धनतेरस

विशेष है विष्कुंभ योग

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के नाम से जाना जाता है, जो कि इस वर्ष 5 नवंबर 2018 को सोमवार के दिन है। इस दिन हस्त नक्षत्र रात्रि 8:00 बज करके 37 तक रहेगा, तत्पश्चात चित्रा नक्षत्र और विष्कुंभ योग लग जायेगा।
विष्णु पुराण के अनुसार इस योग के चलते भगवान विष्णु की अर्धांगिनी मां लक्ष्मी धनतेरस पर अपने भक्तों पर सुख-समृद्धि की वर्षा करेंगी। इस बार मन के कारक चंद्रमा के दिन अर्थात सोमवार को हस्त नक्षत्र एवम् चित्रा नक्षत्र और विष्कुंभ योग से ऐसा अदभुत संयोग बना है जो बहुत ही कम देखने को मिलता है।

सोमवार को हस्त नक्षत्र, विष्कुंभ-योग में सोमप्रदोष का दुर्लभ योग है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस योग को अमृतसिद्धि योग की श्रेणी में रखा गया है। प्रातः राहु काल समाप्त होते ही हस्त नक्षत्र का योग होने से इस दिन बहुमूल्य वस्तुएं, बर्तन और वाहन आदि खरीदना अत्यंत ही शुभ होता है।

ये हैं तिथि और शुभ मुहूर्त

धनतेरस के लिए त्रयोदशी तिथि 05 नवंबर 2018 को सुबह 01 बजकर 24 मिनट से प्रारंभ होकर 05 नवंबर 2018 की रात 11 बजकर 46 मिनट तक रहेगी। इस अवधि में धनतेरस पूजा मुहूर्त इस दिन शाम 06 बजकर 20 मिनट से रात 08 बजकर 17 मिनट तक रहेगा यानि 01 घंटे 57 मिनट।

अंक शास्त्र में उल्लेख है कि धनत्रयोदशी पर नया बर्तन लाने से सौभाग्य एवं समृद्धि की वृद्धि होती है। साथ ही क्‍योंकि इस बार सोमवार भी पड़ रहा है अत: इस धनतेरस पर अगर धन एकत्र करना शुरू करते हैं तो जिनका अपना घर नहीं है वह आगामी वर्षों तक तक अपना घर बना सकते हैं। सोमवार को पढ़ने वाली धनतेरस पर मां लक्ष्मी और कुबेर की पूजा अर्चना करने पर धन एवं संपदा की प्राप्ति होती है। इसीलिए कहा जा रहा है कि इस वर्ष यह पर्व अति शुभ मुहूर्त में पड़ रहा है।

कुबेर का खंडित अहंकार

शिव पुराण के अनुसार, कुबेर ने अपने धन और वैभव के घमंड में देवताओं को भोज के लिए आमंत्रित किया, ताकि वह अपनी संपन्नता दिखा सके। उसने शिव पुत्र गणेश जी को भी निमंत्रित किया। कुबेर का घमंड तोड़ने के लिए गणेश जी उसके भोज में पहुंचे और सारा भोजन चट कर गए। उसके बाद उनकी भूख बढ़ती गई और कुबेर के लिए मुश्किल खड़ी हो गई।

वह गणेश जी की क्षुधा को शांत नहीं करा पा रहा था। गणेश जी ने उसके अन्न और धन के भंडार, हीरे—जवाहरात और धन अपने उदर में समा लिया और अंत में वे कुबेर को ही निगलने के लिए दौड़ पड़े। इस पर डर के मारे कुबेर गणेश जी के सामने शरणागत हो गए और इस तरह उनका घमंड टूट गया।

तब हुआ धन्वंतरि का जन्म

भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद के प्रामाणिक देवता हैं। इस निमित्त मन्त्र चरक-संहिता में प्राप्त होता है- ॐ आयुर्दाय नमस्तुभ्यम अमृत पद्माधिपाय च। भगवन धन्वंतरि प्रसादेन आयु: आरोग्य संपद:।। द्वितीय मन्त्र — “धन्वंतरि नमस्तुभ्यम आयु:आरोग्य स्थिर:कुरु। रुपम देहि यशो देहि, भाग्यम आरोग्य ददस्व में।।” ऊपर दी गई कथा के क्रम में ही उनके जन्‍म की भी कहानी हैा बताते हैं कि कुबेर के यहां भोज से लौटने के बाद गणेश जी के उदर में जलन होने लगी। उनको मधुमेह हो गया। दिन प्रति दिन उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा।

माता पार्वती काफी चिंतित थीं, उन्होंने भगवान शिव को ध्यान मुद्रा से जगाया। उसी समय त्रिकालदर्शी भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ। उन्होंने गणेश जी को दूर्वा का रस पिलाया, तब जाकर गणेश जी के स्वास्थ्य में सुधार हुआ। इसीलिए गणपति के पूजन में दूर्वा अर्पित किया जाता है। इससे गणेश जी जल्द प्रसन्न होते हैं।

धन्वंतरि का स्वरूप

धन्वंतरि जी को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है। उनकी चार भुजाएं हैं। एक हाथ में चक्र, दूसरे में शंख, तीसरे में जलूका और औषधि तथा चौथे हाथ में अमृत कलश होता है। गणेश जी को दूर्वा का रस देने के बाद वे भगवान शिव से आशीर्वाद लेकर संसार के कल्याण के लिए अमृत कलश लेकर कैलास से प्रस्थान कर गए। कहा जाता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का पूजन करने से परिवार में आरोग्य आता है। सभी सदस्य स्वस्थ रहते हैं। इसलिए धनतेरस को धन्वंतरी जयंती भी कहा जाता है। इस दिन वैद्य, हकीम और ब्राह्मण समाज धन्वंतरी भगवान का पूजन करता है।

ऐसे करें पूजन

धनतेरस के दिन मिट्टी का दिया बना धन्‍वंतरी पूजन करें। दिये में सरसों का तेल डालकर की 4 बत्तियां बनाएं, और दिया प्रज्‍वलित करें। जल का छींटा देकर कर, रोली, मौलि, चावल और 4 सुपारी को से पूजन करें। 4 परिक्रमा करने के बाद दिया उठाकर अपने घर के मुख्य द्वार पर रख दें। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान धन्वंतरि वर्ष भर आपके धन कोष में कमी नहीं आने देते।

यमराज का भी होता है पूजन

धनतेरस के दिन ही यमराज का भी पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही दिन है जब मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं रात में की जाती है। रात्रि में यम के निमित्त एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। इसके लिए आटे का दीपक जलाकर के घर के मुख्य द्वार पर रखें और उसकी पूजा करें ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार में अकाल मृत्यु का साया नहीं रहता है।

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