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भारत के शूरवीरों कमांडो के साहस को देश ने कई बार देखा है। लेकिन भारत के जांबाज कैसे तैयार होते, कैसे इनकी ट्रेनिंग होती और कैसे यह हजारों फीट की उंचाई से दुश्मन पर टूट पड़ते हैं, उसकी तैयारी कैसी होती है? आईये जानते हैं आज हम इस खबर में।

हिंदुस्तान के आसमानी प्रहरी हर मुश्किल वक्त में सीना तान कर डटे रहते हैं। मुश्किल से मुश्किल हालात में दुश्मनों को खाक में मिलाने का हुनर इन्हें मालूम है। हेलीकॉप्टर से जंप लगाना या फिर लड़ाकू विमान से कूदना। पलभर में ये अपने दुश्मनों पर टूट पड़ते है और उनका अंत कर देते हैं। 

हर मौसम के मुताबिक खुद ढाल लेते हैं शूरवीर कमांडो

पहाड़ी इलाकों में ऑपरेशन को अंजाम देना हो या फिर थाना जंगली इलाका हो। इस स्पेशल फोर्स के जवान हर रणनीति में माहिर हैं। हर युद्धक्षेत्र में इन्हें महारत हासिल होती है। जाड़ा, गर्मी और बरसात ये कमांडो हर मौसम के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं, क्योंकि ये लोग हर मौसम में इतनी ज्यादा ट्रेनिंग कर लेते हैं कि मौसम भी इनके सामने नहीं टिक पाता है। 

पैरा फोर्स के कमांडो को तैयार करने के लिए खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। हिमाचल प्रदेश के बकलोह में मेक इन इंडिया के तहत स्पेशल फोर्सेज ट्रेनिंग स्कूल बनाया गया है। ये देश में अपनी तरह का पहला ट्रेनिंग स्कूल है। पहले इन जवानों की ट्रेनिंग ऊँची ऊँची पहाड़ियों से होती थी। ऊँचे ऊँचे टावर से जवानों की पैराट्रूपर करवाई जाती थीं। इस तरह जब ट्रेनिंग होती थी तब कई बार खतरा भी होता था।

विंड टनल से होती है तैयारी

विंड टनल मतलब टनल हवा से भरी है। इस टनल में हवा की स्पीड 400 किलोमीटर प्रति घंटे तक की है। यहां जवानों की ट्रेनिंग बिल्कुल रियलिस्टिक माहौल में करवाई जाती है। यहां वैसा ही माहौल तैयार किया जाता है जब वो ऑपरेशंस में उंचाई से जंप लगाते हैं। हवा का वेग भी उतना ही तेज है। ट्रेनिंग के दौरान जवानों को अपने बचाव और लैंडिंग का तरीका भी सिखाया जाता है।

पैरा कमांडो का काम देश के दुश्मनों के विरूद्ध इस स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देना, हाईजैकिंग के हालात से निपटना, आतंकवाद विरोधी अभियान, विशेष टोही मुहिम और देश के दुश्मनों को तलाश कर तबाह करने जैसे सबसे मुश्किल काम होते हैं। इन पैरा कमांडो का सबसे अहम हथियार इनका पैराशूट होता है। पैराशूट को आसमान में सही वक्त पर खोलने की ट्रेनिंग सबसे अहम होती है।

एक पैरा कमांडो के पास दो पैराशूट होते हैं। पहला पैराशूट जिसका वजन 15 किलोग्राम होता है जबकि दूसरा अफसर पैराशूट जिसका वजन पाँच किलोग्राम होता है। इन पैराशूट की कीमत 1 लाख से लेकर 2 लाख तक होती है। पैरा कमांडो को इस तरह की कई कठिन ट्रेनिंग से होकर गुजरना पड़ता है। तब जाकर ये आसमानी योद्धा पलक झपकते ही कई हजार फीट की उंचाई से जमीन पर जाम लगा देते हैं और जमीन से आकाश तक विजयगाथा लिखते हैं।

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