डाक्टर मनराज शास्त्री का विचार प्रवाह: संपादक डाक्टर लाल रत्नाकर

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शिक्षा शास्त्री,ज़मीनी आंदोलनों से जुड़े हुए, सामाजिक पाखंड के विरुद्ध लड़ने वाले एक तेजतर्रार प्रगतिवादी, बुद्धि वादी, प्रगतिशील विचारों के वाहक, सरल जीवन जीने वाले एवं अपनी कथनी और करनी में कोई फांक नहीं रखने वाले डॉक्टर मनराज शास्त्री का जन्म पूर्वांचल के जौनपुर जिले की बदलापुर तहसील के एक पिछड़े हुए गांव में हुआ था। वह अपनी पढ़ाई के दौरान जातीय एवं वर्णवादी भेदभाव के शिकार रहे किंतु उन्होंने कभी हार नहीं माना। शिक्षक के रूप में वे कुछ दिन उत्तराखंड की सेवा में भी रहे किन्तु आख़िर में गन्ना कृषक डिग्री कॉलेज ताखा,शाहगंज जौनपुर के प्राचार्य बनकर अपनी लम्बी अकादमिक सेवाएं दीं। वे पिछड़ा एवं दलित कोचिंग केंद्र वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर के कोऑर्डिनेटर रहे तथा अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा के प्रांतीय अध्यक्ष थे। वे सामाजिक संगठन बीपीएसएस नई दिल्ली के संरक्षक थे।

शिक्षण-प्रशिक्षण एवं सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों में लगातार कार्य करते हुए, इस दौरान उन्होंने अनेक सामाजिक विवादों-वितण्डों के साथ दृढ़ता पूर्वक मुठभेड़ किया। केवल समाज में ही नहीं बल्कि अपने घर में भी उन्होंने धार्मिक और सामाजिक कर्मकांड के विरुद्ध कठोरता पूर्वक युद्ध छेड़ रखा था।वे अपने जीवन को अपने विचारों के अनुरूप जीते थे ताकि लोगों को प्रेरणा मिले। अपनी पत्नी की मृत्यु में उन्होंने मृत्यु भोज करने से साफ़ मना कर दिया था । यही नहीं वह अपने खानदान के दूसरे लोगों को भी ऐसा करने के लिए सहमत करते रहे। डाक्टर ‌ मनराज शास्त्री अनेक सामाजिक संगठनों से जुड़े रहकर, वैज्ञानिक सोच की पैरोकारी करते हुए देश के दूरदराज़ के हिस्सों में लगातार सामाजिक जागरूकता की यात्रा करते रहे। वे ऊंच-नीच और सामाजिक ग़ैर बराबरी के विरुद्ध हमेशा लोगों को एकजुट करते रहे । वे व्यक्ति की आज़ादी,उसकी प्रतिष्ठा एवं गरिमा को बनाए रखने के लिए बढ़-चढ़कर काम करते रहे।
कोरोनावायरस महामारी के दौरान अप्रैल 2021 में वे इसके शिकार हो गए और जौनपुर में ही एक प्राइवेट नर्सिंग होम में अपना इलाज कराने लगे । जब यहां से स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो उन्हें वाराणसी ले जाया गया किंतु वहां भी उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ तथा ऑक्सीजन लेवल लगातार कम होता गया। अंततोगत्वा शास्त्री जी दिनांक 4 मई 2021 को अपना भौतिक शरीर त्याग दिए तथा परि निर्वाण को प्राप्त हो गये।
शास्त्री जी के ऐसे सामाजिक व्यक्तित्व को जानना सुनना एक बात है और उनके विचारों से शब्दस: गुज़रना बिल्कुल अलग बात है। शास्त्री जी ने फेसबुक पर विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर लगातार अपना संक्षिप्त किंतु प्रासंगिक एवं अर्थपूर्ण लेखन किया है। ऐसे लेखन को एक पुस्तकाकार रूप देने का कार्य देश के मशहूर चित्रकार, सामाजिक सरोकारों के प्रति सजग रहने वाले,चिन्तक डॉ. लाल रत्नाकर ने बहुत ही कुशलता पूर्वक संपन्न किया है । यह कार्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि विभिन्न परिस्थितियों एवं समय में शास्त्री जी के विचारों को जानने का एक सबसे अच्छा ज़रिया उनकी फेसबुक पोस्ट हो सकती थी इसलिए उसे संकलित करना सामाजिक हित के लिए भी ज़रूरी था।

फेसबुक के इस संकलन से गुज़रते हुए हमें लगातार यह महसूस होता है कि शास्त्री जी अपने विचारों के प्रति कितने ईमानदार, कितनी सजग तथा कितने अडिग थे। वह एक निर्भीक चिंतक की तरह हर मुद्दे पर अपना दो टूक विचार रखते थे तथा कहीं भी दुराव या छुपाव नहीं करते थे । वह सत्ता के आतंक की भी परवाह नहीं करते थे तथा कई बार वे राजनेताओं को उनके काले कारनामों के लिए नाम लेकर रेखांकित करते थे। उनके फेसबुक संकलन में से कुछ उदाहरण देने से बात और अधिक स्पष्ट हो जाएगी- ” मोदी सरकार केवल पूंजी पतियों और सवर्णों के हित में काम करती है। तीनों कृषि क़ानून पूंजी पतियों के फ़ायदे के लिए हैं। लेटरल एंट्री से भर्ती और आर्थिक आधार पर आरक्षण सवर्ण हित में हैं।वर्षों से लंबित भर्तियों में भी आर्थिक आधार पर आरक्षण सरासर बेईमानी है। यह सरकार बनावटी ब्राह्मणों को ख़ुश करने के लिए प्रतिबद्ध है और पेशवा राज लाना चाहती है। सामाजिक सांस्कृतिक तौर पर पेशवा कितने क्रूर थे यह सबको मालूम नहीं है । संसद में देश को अच्छे क़ानून और नौकरियों की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी थी लेकिन अब यह देखकर नहीं लगता है कि यह संसद है। यहां व्यापारियों के हितों की बात हो रही है। जनता रो रही है । जिम्मेदार अफ़सर और न्यायपालिका आज मौन है क्योंकि उन्हें अपने हिस्से मिल जाएं, उनका भी अब कोई सरोकार नहीं देश बिक जाए ।”

एक अन्य प्रसंग में डॉक्टर मनराज शास्त्री समाज में लोगों के दोहरे चरित्र पर लिखते हुए कहते हैं – “यह ज़रूरी नहीं है कि जैसा मैं सोच रहा हूं वैसा ही हर आदमी सोचे। मैं जैसा बोल रहा हूं वैसा ही हर आदमी बोले । मैं जितना सक्रिय हूं उतना ही हर आदमी सक्रिय हो । जो आदमी सक्रिय नहीं है उसे किसी विषय पर बोलने का हक़ नहीं है। किसी विषय पर बोलने वाला उतना ही सक्रिय हो।”

इस प्रकार विभिन्न मुद्दों पर डॉक्टर मनराज शास्त्री के साफ़-सुथरे एवं निर्णायक विचार इस पुस्तक में संकलित किए गए हैं जो सामाजिक न्याय के योद्धाओं के लिए एक कारगर हथियार साबित हो सकते हैं।

एक पोस्ट में वे आर एस एस प्रमुख सर संघ संचालक मोहन भागवत जी को संबोधित करते हुए सीधे-सीधे हिंदुत्ववादी विचारधारा को चुनौती देते हैं। वे लिखते हैं- ” डॉक्टर भागवत जी! भारत की प्रतिष्ठा न तो मनु के कारण विश्वप्रसिद्ध हुई न आदि शंकराचार्य के कारण। उसका एक मात्र श्रेय बुद्ध और बुद्ध की विचारधारा को जाता है। बुद्ध विषमता के विरोधी, मानवता के पक्षधर, मानव-मानव और नर-नारी की समानता के व्याख्याता और तर्क के अधिष्ठाता थे तथा बिना परीक्षण अपनी बात भी न मानने के उपदेशक थे।”

इस पुस्तक में धर्म के पाखंड को ध्वस्त करते हुए विचारों की भरमार है तथा वैज्ञानिक सोच पर आधारित विचारों को स्वीकार करने की पहल है । पुस्तक में मंदिर, मस्जिद,गिरजाघर से लेकर देश में होने वाले जातीय नरसंहारों, सांप्रदायिक दंगों एवं दलित औरतों के साथ बलात्कार और हत्या के मामलों पर खुलकर और तर्कपूर्ण ढंग से बात की गई है। हिंदुत्व के बारे में एक जगह शास्त्री जी लिखते हैं- ” हिंदू नाम है जन्मजात शोषकों का; हिंदू नाम है देश की सबसे राष्ट्र विरोधी कौम का ; हिंदू प्रतिरूप है दक्षिण अफ्रीका के गौरों का; हिंदू वह है जो हिंदू धर्म शास्त्रों के सौजन्य से शक्ति के स्रोतों के भोग का दैविक अधिकारी( डिवाइन राइट) समझने की मानसिकता से पुष्ट होने के कारण दलित, आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं के अधिकारों को मन से कभी सम्मान नहीं देता है । हिंदू वह है जो दलित आदिवासी और पिछड़ों के आरक्षण के ख़ात्मे में सब समय मशगूल रहता है।”

उपरोक्त उदाहरणों से यह बात समझी जा सकती है कि यह पुस्तक दिलो-दिमाग़ को झकझोर कर रख देने वाली है। जो लोग ईमानदारी से भारतीय समाज और राष्ट्र का हित चाहते हैं उन्हें ऐसे विचारों का शक्तिपुंज उन का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। छोटे-छोटे टुकड़ों में सादगी के साथ सरल भाषा में की गई बातचीत बहते हुए जल की तरह प्रवाह मान है तथा किसी साधारण से साधारण व्यक्ति को भी आसानी से समझ में आ सकने वाली है। इसमें दार्शनिकता का बोझिल साहित्य नहीं है । यहां मज़दूरों,कामगारों, शिल्पियों तथा खेतिहर कृषकों के दुख- दर्द और कठिनाइयों के विषय बड़ी शिद्दत से उठाए गए हैं तथा उनके निराकरण के उपाय भी सुझाए गए हैं। यह पुस्तक निश्चित रूप से एक उपयोगी और क्रांतिकारी पुस्तक है जो सामाजिक दशा और दिशा परिवर्तन में अवश्य ही सहायक सिद्ध होगी ऐसी हमें उम्मीद है। पाठक इसे हाथों-हाथ लेंगे ऐसा हमें विश्वास है।
—बी आर विप्लवी
ग़ज़ल सराय,113/2, सेक्टर 8बी, वृंदावन योजना -2, लखनऊ 226029.

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