बेहतरीन राजनेता होने के साथ ही प्रसिद्ध शिक्षक भी थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

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भारत के इतिहास में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। वह आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उन्हें दर्शन शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञान था। उन्होंने भारतीय दर्शनशास्त्र में भी पश्चिमी सोच की शुरुआत की थी। एक बेहतरीन राजनेता होने के साथ ही राधाकृष्णन एक प्रसिद्ध शिक्षक भी थे। यही कारण है हर वर्ष 5 सितम्बर को उनकी याद शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

Dr. Sarvepalli Radhakrishnan

बीसवीं सदी के विद्वानों में उनका नाम सबसे ऊपर है। वे पश्चिमी सभ्यता से अलग, हिंदुत्व को देश में फैलाना चाहते थे। सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने हिंदू धर्म को भारत और पश्चिम दोनों में फ़ैलाने का प्रयास किया। वे भारतीय और पश्चिमी सभ्यता को मिलाना चाहते थे। उनका मानना था कि शिक्षकों का दिमाग सबसे अच्छा होना चाहिए क्यूंकि देश को बनाने में उनकी अहम भूमिका होती है।

बता दें कि डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के छोटे से गांव तिरुमनी में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था। उनके पिता गरीब थे लेकिन काफी विद्वान् थे। पूरे परिवार की जिम्मदारी भी उनके पिता पर ही थी। इस वजह से राधाकृष्णन का पालन-पोषण अधिक सुख सुविधाओं में नहीं हो पाया। राधाकृष्णन ने 16 साल की उम्र में अपनी दूर की चचेरी बहन सिवाकमु से विवाह कर लिया था जिनसे उन्हें 5 बेटी व 1 बेटा हुआ। इनके बेटे सर्वपल्ली गोपाल की गिनती भारत के महान इतिहासकारों में होती है। राधाकृष्णन की पत्नी का निधन 1956 में हो गया था।

भारतीय क्रिकेट टीम के महान खिलाड़ी वीवी एस लक्ष्मण इन्हीं के खानदान से ताल्लुक रखते हैं। डॉ राधाकृष्णन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तिरुमनी गांव से ही प्रारंभ की थी लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए इनके पिता जी ने इनका दाखिला क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में करा दिया था जहां वे 1896 से 1900 तक रहे। सन 1900 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लूर के कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की। वह शुरू से ही एक मेंधावी छात्र थे। इन्होंने 1906 में दर्शन शास्त्र में M.A किया था।

साल 1909 में राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में बतौर दर्शनशास्त्र का अध्यापक नियुक्त हुए। सन 1916 में मद्रास रजिडेसी कालेज में ये दर्शन शास्त्र के सहायक प्राध्यापक बने। 1918 मैसूर यूनिवर्सिटी के द्वारा उन्हें दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में चुना गया|। इसके बाद वे इंग्लैंड के oxford university में भारतीय दर्शन शास्त्र के शिक्षक बन गए। शिक्षा को डॉ राधाकृष्णन काफी महत्व देते थे और इसी ने उन्हें मजबूत व्यक्तित्व प्रदान किया था।

वह हमेशा कुछ नया सीखने के प्रयास में रहते थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र पर बहुत सी पुस्तकें भी लिखी। डॉ राधाकृष्णन, विवेकानंद और वीर सावरकर को अपना आदर्श मानते थे। जब भारत को स्वतंत्रता मिली उस समय जवाहरलाल नेहरू ने राधाकृष्णन से यह आग्रह किया, कि वह विशिष्ट राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करें। नेहरूजी की बात को स्वीकारते हुए डॉ.राधाकृष्णन ने 1947 से 1949 तक संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया।संसद में सभी लोग उनके कार्य और व्यव्हार की बेहद प्रंशसा करते थे. अपने सफल अकादमिक कैरियर के बाद उन्होंने राजनीतिक में अपना कदम रखा।

13 मई 1952 से 13 मई 1962 तक वे देश के उपराष्ट्रपति रहे। 13 मई 1962 को ही वे भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए।
डॉ.राधाकृष्णन को शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए सन1954 में सर्वोच्च अलंकरण “भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। इसके बाद 1962 से उनके । सम्मान में उनके जन्म दिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई। सन 1962 में डॉ. राधाकृष्णन को “ब्रिटिश एकेडमी” का सदस्य बनाया गया। पोप जॉन पाल ने इनको “गोल्डन स्पर” भेट किया। इंग्लैंड सरकार द्वारा इनको “आर्डर ऑफ़ मेंरिट” का सम्मान प्राप्त हुआ। 17 अप्रैल 1975 को एक लम्बी बीमारी के बाद डॉ राधाकृष्णन का निधन हो गया। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान हमेंशा याद किया जाता है इसलिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाकर डॉ.राधाकृष्णन के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है।

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