टीबी रोग के चलते नही दे पाये थे IIT परीक्षा, जानिए फिर कैसे बन गए मैथमेटिक्स गुरु!

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भारत के हर होनहार छात्र का सपना होता है कि वो देश के सबसे बड़े शिक्षण संस्थान में पढ़े और नाम कमाए, कुछ ऐसा ही सपना लेकर आरके श्रीवास्तव निकले थे, लेकिन परस्थितियों ने उनके सपने को तोड़ दिया। फिर भी उनका दृढ़ निश्चय हमेशा की तरह मज़बूत रहा. जिसकी वजह से आज उन्होंने ऐसा कारनामा क्र दिखाया है, जिसको सोचने में भी लोगों के जीवन निकल जाते है.

बता दें कि मैथमेटिक्स गुरु के नाम से मशहूर आरके श्रीवास्तव का आईआईटियन बनने का सपना उस समय टूट गया था जब टीबी की बीमारी होने के कारण वे आईआईटी की परीक्षा नहीं दे पाये। अपने सपने को जिद में बदलकर आरके श्रीवास्तव ने सैकड़ो गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर बना डाला.

आरके श्रीवास्तव के शुरुआती जीवन की बात करें तो, जन्म बिहार राज्य के रोहतास जिले के बिक्रमगंज गांव में हुआ। आरके श्रीवास्तव ने अपने मातृभूमि बिक्रमगंज से पढ़ाना प्रारम्भ किया। दी गयी जानकारी के मुताबिक उन्होंने अपने गांव के असहाय निर्धन सैकड़ो स्टूडेंट्स को निशुल्क शिक्षा देकर आईआईटी, एनआईटी , बीसीईसीई में सफलता दिलाया। आज ये सैकड़ो निर्धन स्टूडेंट्स अपनी गरीबी को काफी पीछे छोड़ अपने सपने को पंख लगा रहे हैं।

आरके श्रीवास्तव द्वारा “आर्थिक रूप से गरीबो की नही रुकेगी पढ़ाई अभियान” भी चलाया जाता है। इस अभियान के तहत आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को निःशुल्क शिक्षा के अलावा शिक्षा संबधी सारी सुविधाएं भी उपलब्ध करायी जाती हैं। आरके श्रीवास्तव के मुताबिक वो सिर्फ 1 रुपया गुरु दक्षिणा लेकर गणित पढाते हैं। इसके अलावा वो हर साल 50 गरीब स्टूडेंट्स को अपनी माँ के हाथों निःशुल्क किताबे बंटवाते है। वर्तमान में बिहार के आरके श्रीवास्तव को देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थायें गेस्ट फैकल्टी के रूप में लेक्चर देने के लिए भी बुलाये जाते है।

आरके श्रीवास्तव का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, । उनके पिता एक किसान थे, जब आरके श्रीवास्तव पांच वर्ष के थे तभी उनके पिता पारस नाथ लाल इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। पिता के गुजरने के बाद आरके श्रीवास्तव की माँ ने इन्हें काफी गरीबी को झेलते हुए पाला पोषा। आरके श्रीवास्तव को हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। उन्होंने अपनी शिक्षा के उपरांत गणित में अपनी गहरी रुचि विकसित की। जब आरके श्रीवास्तव बड़े हुए तो फिर उनपर दुखो का पहाड़ टूट गया, पिता की फर्ज निभाने वाले एकलौते बड़े भाई शिवकुमार श्रीवास्तव भी इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। अब इसी उम्र में आरके श्रीवास्तव पर अपने तीन भतीजियों की शादी और भतीजे को पढ़ाने लिखाने सहित सारे परिवार की जिम्मेदारी आ गयी।

आरके श्रीवास्तव का नाम ‘वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ लंदन में दर्ज हो चुका है। आर के श्रीवास्तव का नाम ‘वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ द्वारा प्रकाशित किताब में दर्ज किया गया है। किताब में यह जिक्र किया गया है कि आरके श्रीवास्तव ने पाइथागोरस थ्योरम को क्लासरूम प्रोग्राम में 52 अलग अलग तरीके से बिना रुके सिद्ध करके दिखाया है।

प्रोफेसर आरके श्रीवास्तव पढ़ाई के उपरांत टीबी की बीमारी से ग्रसित होने के चलते इलाज के लिए अपने आईआईटी के तैयारी एवम प्रवेश परीक्षा को बीच मे ही छोड़कर अपने मामा के यहाँ से अपने घर बिक्रमगंज आ गए। गांव के डॉक्टर ने आरके श्रीवास्तव को नौ महीने दवा खाने और आराम करने की सलाह दिया। बीमारी के कारण उनका आईआईटियन बनने का सपना टूट गया। आईआईटी की प्रवेश परीक्षा भी बीमारी के चलते छूट गयी। ऐसे ही धीरे-धीरे दिन बीतते गए , घर पर आरके श्रीवास्तव बोर होने लगे। फिर इन्ही 9 महीनों के दौरान आरके श्रीवास्तव अपने आस-पास के स्टूडेंट्स को अपने घर बुलाकर निःशुल्क पढ़ाने लगे।

उनका दावा है कि इस शिविर में पढ़ाई करने वाले में से प्रत्येक वर्ष 60% से अधिक छात्र-छात्राएं आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई ,एनडीए सहित तकनीकी प्रवेश परीक्षाओं में सफल होते है। छात्रों के इस नाईट क्लासेज शिविर की ओर आकर्षित होने के चलते हजारो स्टूडेंट्स के रोल मॉडल बन चुके है। मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव न सिर्फ बिहार में लोकप्रिय है बल्कि अपने गणित पढ़ाने के जादुई तरीके एवम गणितीय शोध के लिए प्रायः सुर्खियों में भी रहते है।

आपको बताते चलें कि बेहतर राष्ट्र निर्माण हेतु शिक्षा में निरंतर किये जा रहे कार्यो के लिए मैथमेटिक्स गुरु आर के श्रीवास्तवा को दर्जनो अवॉर्ड से सम्मानित हो चुके है , इसके अलावा वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स, एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स में भी आरके श्रीवास्तव का नाम दर्ज है।
राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद भी आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्यशैली की प्रशंसा कर चुके है। मैथमेटिक्स गुरु के नाम से राष्ट्रपति ने आरके श्रीवास्तव को शैक्षणिक मीटिंग के दौरान संबोधित भी कर चुके है ।

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