पृथ्वी के होंगे टुकड़े-टुकड़े! साइंटिस्टों ने किया बड़ा खुलासा, धरती के सुरक्षा कवच में बढ़ रही दरार

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नई दिल्ली॥ मनुष्य (HUMAN) का पर्यावरण (environment) के साथ छेड़ छाड़ करने पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये आज कल छोटे बच्चों को भी स्कूल में पढ़ा दिया जाता है। बावजूद इसके हम सब पर्यावरण (environment) को तबाह करने में लगे हुए हैं। पर्यावरण (environment) के साथ की गई छेड़ छाड़ का ही असर है जो मौसम में इतने अधिक चेंजेस देखने को मिल रहे हैं। हालात ऐसे ही रहे तो एक दिन विश्व नष्ट हो जाएगी।

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प्रकाश की घातक किरणों से बचाने वाले हमारी पृथ्वी के सुरक्षा कवच में दरार दिनों दिन बढ़ रही है। अगर हम वक्त रहते नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं, जब इस दरार के चलते पृथ्वी का सुरक्षा कवच (चुंबकीय क्षेत्र) दो टुकड़ों में टूट सकता है।

NASA ने की इस बात की पुष्टि

NASA ने पुष्टि करते हुए बताया कि पृथ्वी का सुरक्षा कवच लगातार कमज़ोर हो रहा है। यह कवच दक्षिण अमेरिका और दक्षिणी अटलांटिक समुद्र के बीच में कमज़ोर हो रहा है। खगोलविदों ने कवच में दरार बनने की इस प्रक्रिया को दक्षिण अटलांटिक विसंगति का नाम दिया है।

खगोलविदों के अनुसार ये दरार हर सेकंड बढ़ती जा रही है और यह दो टुकड़ों में बंट सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह दरार पृथ्वी के अंदर बन रही है, मगर इसका असर पृथ्वी की सतह पर हो रहा है। इसके चलते पृथ्वी के वातावरण में कमजोर चुंबकीय क्षेत्र बन रहा है जो सूरज से निकलने वाले घातक विकिरणों को पृथ्वी की सतह पर जाने से रोक पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है।

वैज्ञानिकों की राय

मौजूदा हालत को देखते हुए साइंटिस्टों ने बताया कि चुंबकीय क्षेत्र के चलते कवच में दरार तो बन ही रही है। पृथ्वी के उत्तरी हिस्से से यह कमजोर चुंबकीय क्षेत्र पूरे आर्कटिक की ओर फैल गया है। मई में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने रिपोर्ट दी थी कि बीते 200 बरसों में चुंबकीय क्षेत्र ने औसतन अपनी 9 फीसदी क्षमता गंवा दी थी। 1970 से ही कवच में क्षति की प्रक्रिया में तेजी आई और यह 8 फीसदी कमजोर हुआ है। हालांकि, कवच के दो टुकड़ों में बंटने को साबित नहीं किया जा सकता है।

साइंटिस्टों के अनुसार, पृथ्वी के अंदर पैदा हो रही इस गड़बड़ी का असर पृथ्वी की सतह तक हो रहा है। खासकर पृथ्वी के नजदीकी वातावरण पर इसका गहरा कुप्रभाव पड़ेगा, जो सैटेलाइट मिशनों के लिए घर है। बताया जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो दुनिया भर के सैटेलाइट मिशनों को एक और बड़ी चुनौती का सामना करना होगा।

सूचना के लिए बता दें कि जब भी कोई सैटेलाइट इन प्रभावित क्षेत्रों से होकर गुजरेगा तो उसे सूरज से निकलने वाली उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन कणों की बौछार का सामना करना पड़ सकता है। वह भी उस वक्त, जब उस इलाके का चुंबकीय क्षेत्र अपनी ताकत का पूरा प्रयोग नहीं कर पाता है। ऐसे में सैटेलाइट के कंप्यूटर खराब हो सकते हैं।

 

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