सोशल-मीडिया पर अक्सर ये खबरें उड़ती रहती हैं कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के पक्षधर थे लेकिन ये सच नहीं है। सच तो यह है कि महात्मा गांधी भी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे। मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग सबसे पहले 1930 में मोहम्मद इकबाल ने उठाई थी। मोहम्मद इकबाल वही शख्स हैं जिन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा’ गीत लिखा था। देश के बंटवारे की इस मांग को इकबाल और बाकी मुस्लिम कट्टरपंथियों ने मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में आगे बढ़ाया।
वर्ष 1933 में हुए तीसरे गोलमेज सम्मेलन में रहमत अली ने यह बात उठाई कि मुस्लिमों के लिए अलग देश बनाया जाना चाहिए। इसके बाद हिंदू कट्टरपंथियों ने भी इस बात को आगे बढ़ाया कि हिंदुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग देश होना चाहिए लेकिन महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और कांग्रेस ने भारत के बंटवारे के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। इसके बाद देश के विभाजन के लिए कई जगहों पर हिंदू-मुस्लिम दंगे भी हुए। जब 1946 में चुनाव हुए तो कांग्रेस को 923 सीटें मिलीं और मुस्लिम लीग को 425 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
इस चुनाव के बाद मुस्लिम लीग को मिली सीटों ने अलग देश की मांग को और बढ़ावा दिया।। कट्टर हिंदू भी यही चाहते थे कि मुस्लिमों के लिए अलग देश हो। गांधी (Mahatma Gandhi) ने 5 अप्रैल 1947 को भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को पत्र लिखा था और कहा था कि वो जिन्ना को भारत का प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार हैं लेकिन भारत का विभाजन नहीं करना चाहते।
हालांकि मीडिया रिपोर्टों में इस बात का जिक्र होता है कि जिन्ना को डर था कि अगर वह प्रधानमंत्री बन गए तो भी अंग्रेजों के जाने के बाद उन्हें हिंदू वोट नहीं मिलेगा और कुछ समय बाद सत्ता फिर से हिंदुओं के हाथ में चली जाएगी। ऐसे में जिन्ना को लग रहा था कि अलग से मुस्लिम देश बनाना ही ठीक रहेगा। जिन्ना की नजर में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) देश के नेता नहीं थे बल्कि वह सिर्फ हिंदुओं का नेता मानते थे। यही कारन है कि जिन्ना अपनी मांग पर अड़े रहे और लॉर्ड माउंटबेटन ने कांग्रेसी नेताओं को इस बात के लिए राजी कर लिया कि 2 देश बनाए जाएं।
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को तो इस फैसले के बारे में बाद में पता चला था।यही वजह है कि गांधी जी देश की आजादी के किसी जश्न में शामिल नहीं हुए थे, इस दौरान वह बंगाल में हो रहे दंगों को रोकने चले गए थे। गांधी का वो सपना अधूरा रह गया, जिसमें वह देश को एक सूत्र में ही पिरोना चाहते थे। उन्होंने देश को बंटवारे से बचाने के लिए जिन्ना के साथ 18 मीटिंग कीं, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी। सांप्रदायिकता के शोरगुल में उनकी विवेक और शांति की आवाज हमेशा के लिए खो गई।
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