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हिन्दू धर्म शास्त्र में जन्म-कुंडली (Horoscope) का बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। ज्योतिष शास्त्र की माने तो किसी भी व्यक्ति का भविष्य उसके जन्म से पूर्व ही निशचित और निर्धारित हो जाता है और व्यक्ति के जन्म होने के बाद यह भविष्य लिखित रूप में रूपांतरित हो जाता हैं जिसे जन सामान्य की भाषा में लोग जन्मपत्री और भाग्य कुंडली भी कहते हैं। इसलिए हिंदू धर्म में सामान्यतः लोग बच्चे के जन्म लेने के बाद जन्म पत्रिका जरूर बनवाते हैं। लेकिन सामान्यतः लोगों को कुंडली देखने नही आती इसके लिए वह किसी ज्योतिषी के पास जाते हैं अथवा किसी पंडितजी के पास और बदले में पंडितजी या ज्योतिषी उनसे दक्षिणा स्वरूप पैसे लेते हैं।

जन्म-कुंडली
जन्म-कुंडली

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इसलिए यदि आप अपनी जन्म पत्रिका स्वयं से देखने के लिए इच्छुक है, तो यहाँ पर सही तरीके से जन्म-कुंडली (Horoscope) कैसे देखे इसकी विस्तृत रूप से जानकारी दी जा रही हैंकिसी भी व्यक्ति के कुंडली को पढ़ते समय हमें राशि, भाव, तारे, नक्षत्र और ग्रह जैसे शब्द दिखाई देते हैं जिनसे हम परिचित नही होते हैं इसलिए पहले इन शब्दों को जान लेते हैं।

किसी भी व्यक्ति की जन्म पत्रिका बनाने में 12 खाने का बनाये  जाते हैं, जिन्हें ज्योतिषीय भाषा में भाव कहते हैं।उसके बाद जन्म पत्रिका बनाने के लिए 12 राशियों का प्रयोग किया जाता है प्रत्येक भावों में बारह अलग-अलग राशियों का प्रयोग किया जाता है। यह राशियां हैं 1.मेष 2.वृष 3. मिथुन 4. कर्क 5. सिंह  6.कन्या 7.तुला 8.वृश्चिक 9.धनु 10.मकर 11.कुंभ 12.मीन। एक भाव में एक ही राशि आती हैं। कुंडली में तारे और नक्षत्र मिल कर संकेतक का कार्य करते हैं। इन तारो और नक्षत्रों को भी ज्योतिष शास्त्र मेें राशि के अनुसार विभाजित किया गया हैं। कुंडली बनाते समय जो ग्रह शामिल किया गया हैं।वह हैं सूर्य ग्रह, चन्द्र ग्रह, मंगल ग्रह, बुध ग्रह, बृहस्पति ग्रह, शुक्र ग्रह, शनि ग्रह, राहू ग्रह और केतु ग्रह (राहु और केतु दोनो की गिनती छाया ग्रह के रूप में होती हैं)। पत्रिका बनाते समय जो भावों को शामिल किया जाता हैं वह इस प्रकार हैं प्रथम भाव, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, चतुर्थ भाव, पंचम भाव, षष्ठ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, नवम् भाव, दशम भाव,एकादश भाव और द्वादश भाव।

मान लीजिए किसी व्यक्ति के जन्म पत्रिका में सबसे ऊपर वाले खाने में संख्या 9 लिखी हुई है और उसी के बगल में इस तरह से ल. लिखा हुआ हैं,यहां ल. का अर्थ लग्न शब्द से हैं  इसका मतलब यह हुआ की यह धनु राशि का जातक हैं क्योकि इसका लग्न संख्या 9 हैं। अब हम इस राशि के बायीं ओर को गिनना शुरू करते हैं तो अगला खाना आता हैंं जिसमें 10 नंबर लिखा होता हैं तो यह पत्रिका का द्वितीय भाव होता हैं। फिर इसी प्रकार से जिसमे 11 लिखा होता है वो तृतीय भाव होता है और जिसमे 12 लिखा है वो चतुर्थ भाव होता हैं और जिसमे 1 लिखा होता है वो पंचम भाव होता हैं और जिसमे 2 लिखा होता है वो षष्ठ भाव होता हैं। जिसमे 3 लिखा होता है वो खाना सप्तम भाव का होता हैं और जिसमे 4 लिखा होता है वो खाना अष्टम भाव का होता हैं। जिसमे 5 लिखा होता है वो खाना नवम भाव का होता है। जिसमे 6 लिखा है वो दसवां भाव होता है और जिसमे 7 लिखा होता है वो खाना ग्यारहवां भाव हुआ और जिसमे 8 लिखा होता है वो खाना बारहवां भाव होता हैं।

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उपरोक्त कुंडली में जो भाव और खानों को बताया गया है उस प्रत्येक भाव और खाने का एक अर्थ होता हैं। पहले भाव को स्वास्थ्य के लिए से दुसरे भाव को धन के लिए  तीसरे भाव को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों के लिए चौथे भाव को माता, मन की शांति, मकान और सुख के लिए  पांचवे भाव को शिक्षा, संतान और परिवार के लिए छठे भाव को कर्जा, दुश्मनी और बीमारी के लिए सातवे भाव को पति – पत्नी अथवा जीवनसाथी के लिए आठवे भाव को मृत्यु , अपमान और जान जोखिम के लिए नवें भाव को भाग्य , धर्म ,न्याय और विदेश यात्रा के लिए दसवे भाव को कर्म और धन प्राप्त करने के लिए  ग्यारहवे भाव को लाभ  के लिए बारहवे भाव को खर्च और आराम के लिए जाना जाता हैं।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हरेक भाव का अपनी ही राशि होती हैं परंतु प्रत्येक भाव का कारक निश्चित होता है।ज्योतिष शास्त्र कहता हैं कि यदि

बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो यह अशुभ माना जाता हैं क्योंकि यह शुभ भावों को भी खराब कर देते हैं। किंतु अच्छे भाव के स्वामी यदि अच्छे भाव से संबंध बनाए तो यह शुभ माना जाता हैं और व्यक्ति को जीवन को सफल बनाने में सहायक होता हैं।ज्योतिष में यह माना जाता है कि यदि किसी भाव का स्वामी अपने भाव से पीछे जाता है तो यह अच्छा नहीं होता है, इससे अपने भावो के गुणो का ह्रास होता है।और यदि भाव का स्वामी अपने भाव से आगे जाता है तो यह अच्छा होता है इससे अपने भाव के गुणो में वृद्धि होती है।

गोचर

भाव, भावेश तथा कारक के अध्ययन के साथ साथ गोचर का भी महत्वपूर्ण स्थान कुंडली में होता है। ज्योतिष शास्त्र कहता है ग्रहों के अनुकूल दशा के साथ का गोचर का भी अनूकूल दशा का होना आवश्यक होता है तभी जातक को शुभ फल मिलते हैं।यह माना जाता है कि किसी भी महत्वपूर्ण घटना को घटित होने के लिए शनि और गुरु का दोहरा गोचर होना जरुरी है। astrologer की माने तो यदि जन्म-कुंडली (Horoscope)में यदि गोचर व दशा नहीं होगी तो जातको को अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होगी क्योंकि अकेला गोचर किसी भी प्रकार का फल देने में सक्षम नहीं होता है।

जन्म-कुंडली (Horoscope) का फलकथन कैसे देखें

ज्योतिषों का मानना है कि कौन सा भाव क्या फल देता है और कब फल देगा यह जानने के लिए भाव, भावेश तथा कारक तीनो की पत्रिका में कया स्थिति हैं इसका अवलोकन व निरीक्षण करना आवश्यक होता है। ज्योतिष शास्त्र कहता है यदि जन्म कुंडली में तीनो (भाव, भावेश तथा कारक) powerful हैं तो जीवन में चीजें बहुत ही अच्छा होगा।और यदि तीन में से सिर्फ दो ही powerful हैं तब भी सफलता मिलेगी बस कुछ कम मिलने की संभावना रहती है। परंतु यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल या सफलता नहीं मिलती या फिर परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।

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