img

Up Kiran, Digital Desk: उत्तराखंड के शांत पहाड़ों की खूबसूरती के पीछे कई ऐसे राज भी छिपे हैं जो आमतौर पर सामने नहीं आते। भीमताल और सातताल के बीच स्थित एक पहाड़ी पर बसा जॉन लैंड इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां एक ऐसा परिवार रहता है जिसकी जड़ें सीधे दूसरे विश्व युद्ध से जुड़ी हैं।

इस पहाड़ी को स्वतंत्रता से पहले फ्रेडरिक स्मेटाचेक नाम के व्यक्ति ने खरीदा था। फ्रेडरिक कोई साधारण नाम नहीं, बल्कि वह शख्स थे जिन्होंने इतिहास के सबसे कुख्यात तानाशाह हिटलर को खत्म करने की नाकाम कोशिश की थी। अगर उनकी योजना कामयाब हो जाती तो शायद विश्व युद्ध का इतिहास ही बदल जाता।

एक असफल लेकिन साहसी मिशन

पीटर स्मेटाचेक, जो अब अपने परिवार के साथ जॉन लैंड में रहते हैं, बताते हैं कि उनके पिता फ्रेडरिक ने 1939 में हिटलर के खिलाफ एक खतरनाक योजना बनाई थी। नाजियों की बढ़ती तानाशाही से तंग आकर उन्होंने और उनके सात साथियों ने मिलकर हिटलर की हत्या की साजिश रची। योजना यह थी कि जैसे ही हिटलर ट्रेन से एक विशेष इलाके में प्रवेश करे, उसे वहीं खत्म कर दिया जाए।

हालांकि यह योजना समय रहते नाजी खुफिया एजेंसियों को पता चल गई। फ्रेडरिक के सभी साथी पकड़े गए और उन्हें गोली मार दी गई। लेकिन फ्रेडरिक किसी तरह बच निकले। उन्होंने न जर्मनी में रुकना चुना, न रूस की ओर भागे, बल्कि सीधे एक जहाज से भारत की ओर निकल पड़े और आखिरकार 1 सितंबर 1939 को कोलकाता पहुंचे।

भारत में मिला नया जीवन

भारत आने के बाद फ्रेडरिक ने यहां की पुलिस को अपनी पूरी कहानी बताई और शरण मांगी। कुछ समय बाद उन्होंने कोलकाता में चेक कंपनी बाटा में काम करना शुरू किया। यहीं पर उनका पारिवारिक जीवन भी शुरू हुआ। कुछ वर्षों बाद उन्होंने पहाड़ों की शांति की तलाश में नैनीताल की ओर रुख किया।

यहां आकर उन्होंने न केवल एक पुराना हंटिंग लॉज खरीदा बल्कि अंग्रेजों से जॉन स्टेट नाम की पहाड़ी को भी अपने नाम कर लिया। यह वही जगह है जिसे आज 'जॉन लैंड' कहा जाता है।

कानून जो आज भी लागू है

इस पहाड़ी पर फ्रेडरिक ने अपनी अलग व्यवस्था बनाई थी। खास बात यह है कि यहां एक नियम ऐसा भी था जिसे आज भी प्रशासन मानता है — इस इलाके में बांज के पेड़ों की कटाई पूरी तरह प्रतिबंधित है। ये नियम उस समय बनाए गए थे और आज भी प्रभावी हैं, जो खुद फ्रेडरिक की सोच और पर्यावरण के प्रति उनकी समझ को दर्शाता है।

एक विरासत जो जीवित है

पीटर स्मेटाचेक आज भी अपने पिता की यादों को संजोकर इस जगह पर रहते हैं। उनके मुताबिक उनके दादा जंगलों से जुड़े थे और पिता ने समुद्री जीवन चुना। युद्ध के साए से निकलकर, अपने अतीत को पीछे छोड़ते हुए, उनका परिवार इस शांत पहाड़ी पर एक नई शुरुआत लेकर आया।

 

--Advertisement--