भींषण ठंड में लगभग डेढ़ माह से दिल्ली की सीमा पर डटे किसानों का संघर्ष अब आम समाज का संघर्ष बन चूका है। समाज के हर तबके के लोग किसानों के पक्ष में आवाज बुलंद कर रहे हैं। आम छात्र, नौजवान, बुजुर्ग, महिलाओं बच्चों तक इसमें भागीदारी कर रहे हैं। अब यह लड़ाई समाज की अस्मिता और अस्तित्व की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है।
मीडिया के नकारात्मक रुख और सरकारी तंत्र के दमन के बावजूद किसान आंदोलन ने न सिर्फ पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया, बल्कि तमाम देशों में किसानों के पक्ष में प्रदर्शन भी हुए। इसके बावजूद केंद्र सरकार किसानों की बात सुनने के बजाय उसे नए कृषि कानूनों के फायदे समझाने की जिद कर रही है।
पंजाब से शुरू हुआ किसान आंदोलन अब पुरे देश में विस्तारित ही चुका है। समग्र समाज की सहानुभूति इस आंदोलन के साथ है। गांव के बच्चे से लेकर बुज़ुर्ग तक इस आंदोलन से जुड़ गए हैं। युवा तबका भी किसानों के साथ खड़ा है। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी इस आंदोलन का सौंदर्य है।
किसान आंदोलन को लेकर मीडिया की भूमिका शुरुआत से ही नकारात्मक ही रही है। भारतीय मीडिया सरकार का पक्षधर बना रहा। इसके जवाब में आंदोलनकारी किसानों ने गोदी मीडिया और सरकारी प्रचार तंत्र के खिलाफ आंदोलन स्थल से ही अपने खुद के समाचार पत्र ट्रॉली टाइम्स का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया। इसके साथ ही इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी उन्होंने खुद का मीडिया शुरू कर दिया। इस तरह के कदम किसानों की क्रांतिकारी भावना का परिणाम है।
केंद्र सरकार के सौतेले व्यवहार के बावजूद किसानों का धैर्य कायम है। दर-असल किसान सत्याग्रह कर रहे हैं। सत्याग्रह सफल होता है, यह किसानों को पता है। इसलिए देश के किसान और उनके साथ समाज पूरी तन्मयता से मोर्चे पर डटा है। आजादी के आंदोलन के दौरान ऐसे ही किसानों के साथ पूरा देश-समाज गांधी जी के साथ खड़ा था। अब सरकार को चाहिए कि राजहठ त्यागकर विवादास्पद कृषि कानूनों को खत्मकर किसानों के साथ न्याय करे।