नई दिल्ली। एक साल से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन की वजह से बाधित दिल्ली की सड़कों को खोलने में केंद्र सरकार की असफलता पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। अदालत ने कहा किसी भी हाईवे को इस तरह लंबे समय तक के लिए नहीं बंद किया जा सकता। इस तरह के मामलों के लिए पहले ही स्पष्ट आदेश दिया जा चुका है लेकिन सरकार उसे लागू नहीं करा पा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने आज हुई सुनवाई के दौरान सरकार से कहा कि वह आंदोलनकारी नेताओं को मामले में पक्ष बनाने के लिए आवेदन दे ताकि आदेश देने पर विचार किया जा सके।
यह है मामला
दरअसल, नोएडा निवासी वाली मोनिका अग्रवाल ने इस मसले पर मार्च में ही एक याचिका दाखिल की थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष किसान आंदोलन की वजह कई महीने से बाधित दिल्ली और नोएडा के बीच यातायात का मसला उठाया था। सुनवाई के वक्त कोर्ट को हरियाणा से लगी दिल्ली की अन्य सीमाओं को भी किसान आंदोलनकारियों की तरफ से रोके जाने की जानकारी मिली। इस पर उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा और यूपी को भी पक्ष बनाया लिया था। पिछले छह महीने से लंबित इस मामले में केंद्र, यूपी और हरियाणा सरकार ने एक ही जवाब दिया कि वह आंदोलनकारियों को समझा-बुझा कर सड़क खाली कराने का प्रयास कर रहे हैं।
पुराना फैसला
गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने शाहीन बाग मामले पर फैसला दिया था जिसमें कहा गया था कि आंदोलन के नाम पर किसी सड़क को लंबे समय के लिए बाधित नहीं किया जा सकता। धरना-प्रदर्शन जैसे कार्यक्रम प्रशासन की ओर तय की गई जगह पर ही होने चाहिए। याचिकाकर्ता ने इसी फैसले को याचिका में आधार बनाया है.
आज क्या हुआ?
कोर्ट में हरियाणा और केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने अनुरोध किया कि कोर्ट आंदोलनकारी नेताओं को बतौर पक्ष मामले में जोड़े। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल और एम एम सुंदरेश की बेंच ने कहा, “ऐसे मामलों पर आदेश दिया जा चुका है, सरकार का काम है उसे लागू करना, आप चाहते हैं कि हम बार-बार एक ही बात को दोहराएं।” इस टिप्पणी के बाद कोर्ट ने सरकार को इस बात की अनुमति दे दी कि वह आंदोलन से जुड़े नेताओं को पार्टी बनाने के लिए आवेदन दे। मामले की अगली सुनवाई सोमवार, 4 अक्टूबर को होगी।