दुर्लभ बीमारी से ग्रसित बच्ची को पिता ऐसे खींच लाया मौत से बाहर, अब हो रही तारीफ

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छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ की राजधानी में एक ऐसा मामला सामने आया जिसे सुनकर आंखों में आंसू आ जाते हैं, यहां एक पिता ने दुर्लभ बीमारी से जूझ रही अपनी छह महीने की बच्ची को लिवर देकर उसकी जान बचाई। बच्ची की बीमारी को लेकर डॉक्टरों ने बताया कि अगर अति शीघ्र उसका लिवर ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता तो वह ज्यादा से ज्यादा एक-दो महीने और जिंदा रह पाती।

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जानकरी के मुताबिक छत्तीसगढ़ रायपुर निवासी लव सिन्हा और पत्नी सीमा सिन्हा को जब यह पता चला कि उनकी 6 माह की बेटी ताक्षी को बाइलियरी अत्रेसिया (Biliary Atresia) नाम की दुर्लभ बीमारी है। यह लिवर से संबंधित बीमारी है। इस बीमारी में पित्त की नलियां ब्लॉक होने से पीलिया बढ़ता जाता हैऔर समय बढ़ने के साथ लिवर क्षतिग्रस्त होने लगता है। ऐसे में मरीज की मात्र 4-6 महीने में ही मृत्यु भी हो सकती है। बच्ची ताक्षी का वजन 5 किलोग्राम था। डॉक्टरों के मुताबिक बीमारी बच्चों में जन्मजात होती है। जब बच्ची के माता पिता को उसकी बीमारी का पता चला तो वह परेशान हो गए और उसके इलाज के लिए अस्पतालों के चक्कर काटने लगे। लेकिन कहीं से भी राहत न मिली।

बच्ची की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी। आखिरकार ये लोग बच्ची को लेकर रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल पहुंचे। इस अस्पताल में डॉ. अजीत मिश्रा ने बच्ची की जाँच कराई तो पाया कि बच्ची को बाइलियरी अत्रेसिआ है। बच्ची के पास अब सिर्फ 1 या 2 महीने का ही वक्त है। ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट के अलावा कोई अन्य उपाय नहीं है। बच्ची के पिता लव सिन्हा ने तत्काल ताक्षी को अपने लिवर का हिस्सा देने का फैसला किया। इसके बाद अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. संदीप दवे के मार्गदर्शन में उसका ट्रांसप्लांट किया गया। डॉ. मोहम्मद अब्दुन नईम और डॉ. अजीत मिश्रा की टीम ने इस जटिल ऑपरेशन को 8 से 9 घंटे में पूरा किया। यह ऑपरेशन मध्य भारत का पहला ऐसा ऑपरेशन है जिसमें इतनी कम उम्र की बच्ची का लिवर ट्रांसप्लांट हुआ है।

बाइलियरी अत्रेसिया (Biliary Atresia) बीमारी 10 से 15 हजार बच्चों में किसी एक को होती है। पूर्व एशिया में यह बीमारी 5000 बच्चों में से किसी एक को होती हैछत्तीसगढ़ की राजधानी में एक पिता ने दुर्लभ बीमारी से जूझ रही अपनी छह महीने की बच्ची को लिवर देकर उसकी जान बचाई। बच्ची की बीमारी को लेकर डॉक्टरों ने बताया कि अगर अति शीघ्र उसका लिवर ट्रांसप्लांट नहीं किया जाता तो वह ज्यादा से ज्यादा एक-दो महीने और जिंदा रह पाती।

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