2 साल तक सौतेले बाप ने किया दुष्कर्म, प्रेग्नेंट होने पर खोली पोल, अब सजा के लिए॰॰॰

img

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अपनी सौतेली लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले पिता की सजा को बरकरार रखा है। आरोपी ने अदालत में राहत के लिए याचिका लगाई थी। इस केस में 14 वर्षीय पीड़िता के प्रेग्नेंट होने पर सौतेले पिता की करतूत सामने आई थी। इसके बाद मां ने युवती का ऑबर्शन करा दिया था। किंतु DNA के लिए भ्रूण के सैंपल लिए गए थे। उसी आधार पर विशेष कोर्ट ने आरोपी पिता को मुजरिम करार दिया था।

Rape

इस केस की सुनवाई के बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत एक विशेष अदालत की सजा को बरकरार रखा। दोषी पिता को कोई राहत नहीं दी गई। न्यायमूर्ति संदीप के शिंदे की पीठ 36 वर्षीय मैकेनिक की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने इस जुर्म के लिए दोषी ठहराया था और सजा सुनाई गई थी।

कलयुगी बाप ऐसे बनाता था हवस का शिकार

दरअसल, 14 वर्षीय पीड़िता के पिता की सन् दो हजार में मौत हो गई थी। उस वक्त वह केवल दो बरस की थी। इसके बाद वह अपने नाना-नानी के साथ उनके घर पर रह रही थी। किंतु साल 2010 में उसकी मां ने पुनर्विवाह कर लिया। वर्ष 2012 में पीड़िता अपनी मां, बहनों, सौतेले पिता (आरोपी) और सौतेले भाई के साथ ठाणे में रहने लगी। जब वह 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तब उसके सौतेले पिता ने उसका यौन उत्पीड़न किया। जब भी उसकी मां कार्य करने के लिए बाहर जाती थी, वो दरिंदा उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था।

वो मासूम को धमकी भी देता था। यही कारण था कि पीड़िता ने इस वारदात के बारे में किसी को नहीं बताया। किंतु लड़की के गर्भवती होने पर ये अपराध सामने आ गया। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि नाबालिग लड़की 4 महीने की गर्भवती थी। इसके बाद उसकी मां ने थाने जाकर अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। इसके बाद उसने अपनी बेटी का गर्भपात करा दिया। किंतु फोरेंसिक स्टाफ ने DNA टेस्ट के लिए पीड़िता के ब्लड सैंपल लेने के साथ-साथ भ्रूण की कोशिकाओं के नमूने भी ले लिए थे।

वकीलों ने DNA रिपोर्ट को नहीं माना

जज शिंदे ने कहा, “मेरे विचार में, पीड़िता का आचरण अस्वाभाविक नहीं था, और इसलिए उसने शुरू में अपने सौतेले पिता के नाम का खुलासा नहीं किया था।” इस मामले में भ्रूण की DNA रिपोर्ट थी, जिसने आरोपी पिता को सजा तक पहुंचा दिया। जब DNA रिपोर्ट का नतीजा सामने आया तो अभियुक्त पिता ने इसका विरोध किया था। उसके वकीलों ने DNA रिपोर्ट को नहीं माना था।

जज शिंदे ने कहा कि इस केस में आरोपी ने विशेषज्ञ को बुलाने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया था और न ही अभियुक्त ने ये बताया कि रिपोर्ट में कैसे कमी थी, इसके लिए सबूतों में DNA रिपोर्ट को स्वीकार करने से पहले विशेषज्ञ को बुलाना था। ऐसे हालात में अभियुक्त ने रिपोर्ट पर आपत्ति उठाई थी। ट्रायल कोर्ट ने पहले विशेषज्ञ की जांच के बिना सबूतों में DNA रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया, कोर्ट ने पहले उसे खारिज कर दिया था।

Related News