Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आ चुके हैं और इन चुनावों में 'दोस्ताना मुकाबला' (Friendly Fight) काफी चर्चा में रहा. ये वो सीटें थीं, जहाँ महागठबंधन के सहयोगी दल ही एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे थे. आखिर क्या रहा इन 'दोस्ताना मुकाबलों' का हाल, क्या इससे महागठबंधन को फायदा हुआ या नुकसान? चलिए समझते हैं.
दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में विपक्षी महागठबंधन (इंडिया ब्लॉक) के कई घटक दल लगभग 10 से 12 सीटों पर आमने-सामने थे. इन सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, और वाम दलों (CPI, CPM) जैसी पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं, जिसे 'दोस्ताना मुकाबला' नाम दिया गया
महागठबंधन में यह आपसी तकरार सीट बंटवारे को लेकर हुई. बताया जाता है कि लंबे समय तक सीट-शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पाई, और कई सीटों पर सहयोगी दलों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए कुछ उम्मीदवारों ने नामांकन वापस भी लिया, लेकिन कई जगह ये अंदरूनी लड़ाई जारी रही.
इस 'दोस्ताना जंग' को लेकर राजनीतिक गलियारों में खूब बातें हुईं. एनडीए (NDA) के नेताओं ने इसे महागठबंधन का "गृहयुद्ध" तक करार दिया, जिससे उनकी एकता पर सवाल उठने लगे. विश्लेषकों ने आशंका जताई थी कि इससे वोटों का बंटवारा हो सकता है, जिसका सीधा फायदा एनडीए गठबंधन को मिल सकता है.
इन 'दोस्ताना मुकाबले' वाली सीटों में कैमूर की चैनपुर, रोहतास की करगहर, पश्चिम चंपारण की नरकटियागंज, जमुई की सिकंदरा, भागलपुर की कहलगांव और सुल्तानगंज जैसी सीटें शामिल थीं. बछवाड़ा सीट पर भी कांग्रेस और भाकपा आमने-सामने थे, वहीं वैशाली और बेलदौर जैसी सीटों पर भी महागठबंधन के सहयोगी ही आपस में भिड़ रहे थे.
चुनाव परिणाम बताते हैं कि इन 'दोस्ताना मुकाबलों' ने महागठबंधन की एकजुटता पर बड़ा सवाल खड़ा किया है. ऐसी आंतरिक लड़ाइयों का अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है, क्योंकि गठबंधन का वोट बँट जाता है और विरोधी को जीत का आसान रास्ता मिल जाता है. चुनाव के नतीजों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि 'दोस्ताना मुकाबले' वाली ज्यादातर सीटों पर महागठबंधन को अपेक्षित लाभ नहीं मिला, बल्कि कुछ जगहों पर तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ा.


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