hanuman ji: सीता जी बात सुन चरणों में गिरीं राक्षसियां, दुखी हुए हनुमान जी

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सीताहरण के बाद उनके लंका में होने की खबर के बाद जब उनका हाला जानने के लिए हनुमान अशोक वाटिका में पहुंचे तो वहां पर जानकी जी की स्थिति देख कर बेहद दुखी हुए। इसी बीच त्रिजटा नाम की राक्षसी ने अपना सपना सुनाते हुए सीता जी को बताया कि श्री राम यहां आकर सभी राक्षसों का संहार कर सीता माता को ले जाएंगे। त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों से कहा कि ये सपना जल्द ही सत्य सिद्ध होने वाला है। इस पर सभी राक्षसियां डर गईं और सीता माता के चरणों में गिर पड़ीं और रोने लगी।

इसके बाद सीता जी ने उनकी सुरक्षा में तैनात राक्षसी त्रिजटा से बेहद विनयपूर्वक कहा कि वह कहीं से कुछ लकड़ियां एकत्र करके एक चिता बना दे ताकि वह अपना शरीर खत्म कर लें। सीता जी की विरह वेदना को देख अशोक वाटिका में अशोक के पेड़ में पत्तों के बीच छिपे बैठे हनुमान ने उनके सामने प्रभु श्री राम की दी हुई अंगूठी गिरा दी। अंगूंठी देखत ही सीता माता ने उसे हाथ में ले लिए और हर्षित हो उठीं। सीता जी ने राम नाम से अंकित अत्यंत सुंदर और मनोहर अंगूठी को देख कर प्रसन्नता जताई क्योंकि वह उस अंगूठी को पहचान गई थीं कि ये उनके पति राम की अंगूठी है।

उस अंगूठी को इस तरह से अचानक सामने गिरा देख कर वह आश्चर्यचकित हो कर उसे देखने लगी और मन ही मन विचार करने लगीं कि श्री रघुनाथ जी तो अजेय हैं, उन्हें कोई नहीं जीत सकता है और माया से ऐसी अंगूठी बनाई भी नहीं जा सकती है। सीता जी अभी मन में विचार कर ही रही थी कि हनुमान जी अशोक के पेड़ के पत्तों के पीछे से प्रभु श्री राम गुणों का वर्णन करने लगे। हनुमान जी के इन वचनों को सुनते ही सीता जी का दुख भाग गया और वह कान लगा कर ध्यान से उनकी बात सुनने लगीं। हनुमान जी ने शुरू से लेकर आखिर तक पूरी कथा उन्हें डाली।

अमृत रूपी शब्द सुनने के बाद सीता जी बोलीं, अरे भाई आप कौन हैं और मेरे सामने क्यों नहीं आते है। इसके बाद हनुमान जी सूक्ष्म रूप में सीता जी के सामने आये। हनुमान जी को देखते ही सीता जी ने मुंह फेर लिया। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि एक सामान्य से वानर श्री रघुनाथ जी की अंगूठी लेकर उनका पता लगाने आ सकता है। सीता जी को घोर आश्चर्य हुआ। इस पर हनुमान जी कहते हैं हे माता, मैं शपथ पूर्वक कहता हूं कि यह अंगूठी मैं ही लाया हूं, जो श्री राम जी ने आपको देने के लिए निशानी के रूप में मुझे दी है ताकि आप मुझे पहचान सकें, मैं श्री राम का दूत हूं।’

थोड़ी देर में जब सीता जी को हनुमान जी पर भरोसा हो गया तो उन्होंने हनुमान जी से पूछा कि नर और वानर का संग कैसे हुआ, मुझे सारी बातें विस्तार पूर्वक बताओ। इसके बाद हनुमान जी ने रावण द्वारा सीता हरण से लेकर श्री राम से मिलने के बाद वानरों द्वारा उनकी खोज करने की पूरी बात शुरू से अंत तक उन्हें बता दी। हनुमान जी के वचन सुनकर सीता जी के मन में पूरा विश्वास हो गया कि यह मन वचन और कर्म से कृपा के सागर श्री रघुनाथ जी के दास हैं।

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