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बकरीद मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। 29 जून को बकरीद पूरे भारत में मनाया जाएगा। बकरीद को ईदुल अजहा, ईद उल जुहा या फिर बकरा ईद के नाम से भी जाना जाता है। इसे रमजान खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। बकरा ईद पर कुर्बानी देने की प्रथा है।

इस वजह से मनाई जाती है बकरीद

इस दिन कुर्बानी देने और इसे मनाने के पीछे इस्लामिक कई धार्मिक मान्यताएं। इस्लाम मजहब की मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई। कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला लिया।

कहते हैं कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने वाले थे, उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे में बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए बनाई जाती है। इस त्योहार को नर बकरे की कुर्बानी देकर बनाया जाता है। जिन लोगों के पास बकरा नहीं होता है, वह खरीदकर बकरे को लेकर आते हैं और उसकी बलि दी जाती है।

जानें क्यों कुर्बानी के गोश्तों 3 हिस्सों में बांटा जाता है

इसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है। इस दिन सभी मुस्लिम सवेरे उठकर नमाज पढ़ने जाते हैं और एक दूसरे से गले मिलकर इबादत और सबकी खैरियत की कामना करते हैं।

इस्लामी साल में दो ईद मनाई जाती हैं जिसमें एक ईद ईदुज्जुहा और दूसरी की ईदुलफितर। ईदुल फितर को मीठी ईद भी कहते हैं। इसे रमजान को खत्म करते हुए मनाया जाता है, लेकिन बकरीद का महत्व अलग है। हज की समाप्ति पर इसे मनाया जाता है। 

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