यहां अलग जाति-धर्म में शादी करने वालों को मिलते हैं 50 हजार रु., बवाल के बाद सरकार ने दिया ये बयान

img

देहरादून। एक ओर जहां शादी के नाम पर महिलाओं के धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए भाजपा शासित कई राज्य कानून बनाने वाले हैं तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा की ही उत्तराखंड सरकार प्रदेश में ऐसी शादियों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए किसी अन्य जाति या धर्म के व्यक्ति से शादी करने वालों को 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है।

marrige

प्रदेश के समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यह प्रोत्साहन राशि कानूनी रूप से पंजीकृत अंतरधार्मिक विवाह करने वाले सभी कपल्स को दी जाती है। अंतरधार्मिक विवाह किसी मान्यता प्राप्त मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या देवस्थान में संपन्न होना चाहिए। उन्होंने बताया कि अंतरजातीय विवाह करने पर प्रोत्साहन राशि पाने के लिए कपल में से पति या पत्नी किसी एक का भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, अनुसूचित जाति का होना आवश्यक है।

बवाल के बाद बोले सीएम के सलाहकार, जल्द ठीक करेंगे नियम

हालांकि प्रोत्साहन राशि बांटे जाने पर मचे बवाल के बाद प्रदेश सरकार ने शनिवार को कहा कि इस मामले में जारी आदेश को ठीक करने की कार्रवाई की जा रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार आलोक भट्ट ने सोशल मीडिया में जारी एक बयान में कहा है कि संशोधन की कार्रवाई में समय लगेगा मगर इस आदेश को ठीक कर दिया जाएगा। उत्तराखंड सरकार के अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपतियों को पचास हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दिए जाने के मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब टिहरी के समाज कल्याण अधिकारी ने इस संबंध में जानकारी देने के लिए एक प्रेस नोट जारी किया।

टिहरी के जिला समाज कल्याण अधिकारी ने कराई फजीहत?

टिहरी के जिला समाज कल्याण अधिकारी दीपांकर घिल्डियाल ने बताया कि राष्ट्रीय एकता की भावना को जगाए रखने और समाज में एकता बनाए रखने के लिए अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह काफी सहायक हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे विवाह करने वाले कपल शादी के एक साल बाद तक प्रोत्साहन राशि पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

2014 में रकम को 10 से बढ़ाकर 50 हजार किया गया

उत्तर प्रदेश अंतरजातीय/अंतरधार्मिक विवाह प्रोत्साहन नियमावली, 1976 में संशोधन के जरिए उत्तराखंड में 2014 में इसके तहत दी जाने वाली रकम को 10,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर 2000 में जब उत्तराखंड का गठन हुआ था तो इस नियमावली को उसी रूप में अपना लिया गया था।

Related News