हिंदू कैलेंडर- 5 आसान चरणों में पंचांग पढ़ना सीखें

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हिंदू कैलेंडर बोलते ही मन में यह पहले यही सवाल आता है कि आखिर यह होता क्या हैं। हिंदू कैलेंडर को बोलचाल की भाषा में और वैदिक ज्योतिष में पंचांग कहा जाता हैं। माना जाता है कि इस शब्द का उद्भव संस्कृत से हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ है पंच” से पांच और दूसरा शब्द “अंग” का अर्थ अंग होता है। मतलब पांच मूलभूत तत्व से मिलकर जो एक पूरा अंग बनता है उसे पंचांग कहते हैं। इस पंचांग में प्रत्येक वर्ष सूर्य या चंद्रमा चक्र,ग्रह, नक्षत्र आदि की स्थिति बदलती रहती हैं। या फिर यह कहा जाए कि यह एक तरह से सारणीबद्ध रूप में ज्योतिषीय डेटा के साथ-साथ शुभ मुहूर्त और महत्वपूर्ण तिथियों को सूचीबद्ध करता है।

हिंदु कैलेंडर

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इसी तरह आज हम यह जानगे कि पंचांग को 5 सरल चरणों में कैसे पढ़ा जाए ।

चरण 1: पंचांग (हिंदू कैलेंडर) बनता कैसे हैं

भारत देश में लगभग सभी त्योहार और उपवास पंचांग के अनुसार ही मनाए जाते हैं। जो भी लोग धार्मिक हैं व भगवान के साथ-साथ और  ज्योतिष शास्त्र, या वेदों में आस्था रखते हैं, वे नियम पूर्वक पंचांग का पालन करते हैं।

इसमें प्रमुख रूप से दो तत्वों सूर्य और चंद्र को शामिल किया जाता हैं और इन दोनो तत्वो को मिलाकर जो कैलेंडर बनता है उसे lunisolar calendar बोलते है।चलिए देखते हैं सूर्य आधारित कैलेंडर और चंद्र आधारित कैलेंडर कैसे देखते हैंं।

सूर्य कैलेंडर : यह कैलेंडर  सूर्य संक्रमित ग्रह प्रणाली का अनुसरण करते हैं। आप भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न नियमों के अनुसार पढ़े जाने वाले सौर कैलेंडर के अनुसार सभी संक्रांति का पालन कर सकते हैं।

चंद्र कैलेंडर:  यह कैलेंडर चंद्र संक्रमण का पालन करते हैं। शुभ मुहूर्त के समय की तलाश में, चंद्र कैलेंडर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही पंचांग चंद्र कैलेंडर की श्रेणी में आता है।

चरण 2: पंचांग में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को समझें

पश्चिमी कैलेंडर की भांति ही पंचांग भी मास (महीने),संवत (वर्ष), और तिथि (तिथियां) पर निर्भर करती है।

संवत (वर्ष)

हिंदू कैलेंडर में एक वर्ष को संवत कहते है। इसे विक्रम संवत भी कहते है। इस संवत की गणना करने के बहुत सारे तरीके भी वैदिक शास्त्र मे बताये गये है लेकिन आज के समय में केवल 50 ही उल्लेखनीय हैं इनमें से कुछ इस प्रकार हैं बुद्ध संवती, महावीर संवती, हिजरी संवती, सिख संवती, ईरानी संवती, यौदी संवत इत्यादि।

माह या मास (माह)

हिंदूओ के पंचांग में महीनों को मास कहा जाता है। और अंग्रेजी कैलेंडर की भांति ही इन्हें भी 12 मास में विभाजित किया गया है,जैसे कि

चैत्र (मार्च-अप्रैल), वैशाख (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा (मई-जून), आषाढ़ (जून-जुलाई), श्रवण (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (अगस्त-सितंबर), अश्विना (सितंबर-अक्टूबर), कार्तिका (अक्टूबर-नवंबर), मार्गशीर्ष (नवंबर-दिसंबर), पौष (दिसंबर-जनवरी), माघ (जनवरी-फरवरी), फाल्गुन (फरवरी-मार्च)I

दिन (वार)

पंचांग में दिनों को वार के रूप मे जानते है। ये निम्नलिखित हैं:

सोमवार , मंगलवार , बुधवार , वृहस्पतिवार, शुक्रवार शनिवार, रविवार

तिथि (तिथियां)

पंचांग में एक महीने में दो तिथियां होती हैं। इसकी गणना चंद्रमा के 15 दिन के आधार पर की जाती है।इन्हें ही पंचांग की तिथियां कहा जाता है और इन्हें इस तरह से  विभाजित करते  है:

कृष्ण पक्ष: पहला पखवाड़ा (15 दिनों की अवधि)

दिन 1: कृष्ण प्रतिपदादिन

2: कृष्ण द्वितीयादिन

3: कृष्ण तृतीयादिन

4: कृष्ण चतुर्थीदिन

5: कृष्ण पंचमीदिन

6: कृष्ण षष्ठीदिन

7: कृष्ण सप्तमीदिन

8: कृष्ण अष्टमीदिन

9: कृष्ण नवमीदिन

10: कृष्ण दशमीदिन

11: कृष्ण एकादशीदिन

12: कृष्ण द्वादशीदिन

13: कृष्ण त्रयोदशीदिन

14: कृष्ण चतुर्दशीदिन

15: अमावस्या

शुक्ल पक्ष: दूसरा पखवाड़ा (15 दिनों की अवधि)

दिन 1: शुक्ल प्रतिपदादिन

2: शुक्ल द्वितीयादिन

3: शुक्ल तृतीयादिन

4: शुक्ल चतुर्थीदिन

5: शुक्ल पंचमीदिन

6: शुक्ल षष्ठीदिन

7: शुक्ल सप्तमीदिन

8: शुक्ल अष्टमीदिन

9: शुक्ल नवमीदिन

10: शुक्ल दशमीदिन

11: शुक्ल एकादशीदिन

12: शुक्ल द्वादशीदिन

13: शुक्ल त्रयोदशीदिन

14: शुक्ल चतुर्दशीदिन

15: पूर्णिमा

चरण 3: शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष क्या हैं

पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक और फिर से अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक के दौरान चंद्रमा के बढते हुए रूप की ओर घटते हुए रूप की गणना की जाती है।पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूर्ण प्रकाश दिखायी देता है।तो दूसरी ओर अमावस्या के दिन चंद्रमा की रोशनी बिल्कुल ही नही दिखाई देता है।इन 15 दिनों अवधि को क्रमशः कृष्ण और शुक्ल पक्ष के रूप में जाना जाता है।

चरण 4: पूर्णिमा और अमावस्या के आधार पर पंचांग देखे

ज्योतिष शास्त्र और वैदिक शास्त्र के अनुसार यदि आपको पंचांग देखना है तो  पूर्णिमा और अमावस्या का ज्ञान आप को अवश्य होना चाहिए:पूर्णिमा की रात के बाद का चंद्रमा का आकार घटता है और यह प्रकिया तब तक चलती है जब तक चंद्रमा पूरी तरह से शून्य नही हो जाता मतलब अमावस्या नहि आ जाता।और यह प्रकिया पुनः चलती है मतलब अमावस्या के बाद चंद्रमा पुनः अपनी पूरी आकृति में आ जाता है जिस से पूर्णिमा होती है इस पूरी प्रकिया को  वैक्सिंग चरण कहा जाता है। इसीलिए प्रत्येक मास का अंत पूर्णिमा पर होता है न कि अमावस्या पर।

चरण 5: शुभ मुहूर्त को कैसे देखे

पंचांग में शुभ मुहूर्त को देखने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पंचांग के तिथी और पक्ष का अच्छे से अध्ययन किया जाये। पंचांग के शुभ मुहूर्त के लिए वार (दिन), तिथि (तिथि) और नक्षत्र (ग्रह और सितारे) के संयोजन के अनुसार इनका अधययन करना होता है।

यह माना जाता है कि अधिकांश शुभ मुहूर्त शुक्ल पक्ष के 15 दिनों में आते हैं।

वार( दिन ) का अध्ययन

शुभ मुहूर्त में वार को दो भागों में बांटा गया है:

1• क्रूर वार: इन्हें कदवे वार या भारी दिनों के नाम से  भी जाना जाता है। क्रूर वार के अंतर्गत आने वाले दिन हैं शनिवार, रविवार और मंगलवार । माना जाता है खिलाफ यह दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए अच्छे नही होते हैं। 2• सौम्य वार: इसे नरम दिनों के नाम से भी जाना जाता है।इस वार के अंतर्गत आने वाले दिन हैं  गुरुवार, शुक्रवार, सोमवार और बुधवार । माना जाता है कि इस दिन कोई भी नया काम करने से सफलता मिलती है।

तिथी का अध्ययन

तिथी का अर्थ पूर्ण तिथि से लिया जाता है जो कि  पंचमी, दशमी और पूर्णिमा या पूर्णिमा शुक्ल और कृष्ण पक्ष दोनों का दिन होता है।शुभ मुहूर्त की दृष्टि से देखे तो यह दिन किसी कार्य को आरंभ करने के लिए अत्यंत शुभ होते हैं।

नक्षत्र का अध्ययन

वे लोग जिन को  वैदिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र दोनो का ज्ञान है, वह नक्षत्र अथवा सितारों और ग्रहों की स्थिति की गणना करते हैं। वे गणना करते समय ही पंचांग से मुहूर्त निकालने में करते हैं। और इस प्रकार से नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है पंचांग को पढ़ने के लिए।

योग और करण

किसी भी हिंदू कैलेंडर के शुभ मुहूर्त के लिए वार, तिथि और नक्षत्र जितने महत्वपूर्ण हैं उतने ही महत्वपूर्ण योग और करण भी हैं।

 योग

जब सूर्य और चंद्रमा के निरायण देशांतर और कुल को 13°20′ (प्रत्येक) के 27 भागों में विभाजित किया जाता है तब जाकर एक योग बनता हैं। अत: कुल मिलाकर 27 योग हैं

विश्वकुंभ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभना  अतिगंडा, सुकाराम, धृति, शूल गंडा, वृद्धा:, ध्रुव, व्यघाट:, हर्षनावज्र, सीधी, व्यतिपात:, वरियाना, परिधि, शिव, सिद्ध, साध्या, शुभ:, शुक्ल, ब्रह्मा, इंद्र, वैधृति

करण

यह तिथि के आधा भाग के रूप के नाम से जाना जाता है।  जब चंद्रमा का निरायण देशांतर, प्रत्येक सूर्य ग्रह पर 6° बढ़ जाता है यह तब समाप्त हो जाता है । कुल मिलाकर 11 कर्ण होते हैं।इनमें से चार महीने में सिर्फ एक करण होते है जिसे स्थिर करण कहते हैं।यह है

किमस्तुघना, चतुष्पदा, शकुनि, नाग

शेष सात करण गतिमान होते हैं यह हैं

बावा, बकलावा, कौलव, तैतिला, गारा, वनिजा,विष्टी

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