भारत में अन्य पर्वों की तरह लोहड़ी का पर्व भी करोड़ों लोग बड़ी धूधाम से मनाते हैं। पर्व के 15-20 दिन पहले ही घरों के लड़के-लडकियां लोहड़ी के गाने, गाने के लिए अभ्यास शुरू कर देती हैं। बच्चे लकड़ियां और उपले एकत्र करने में लग जाते हैं। संचित सामग्री से चौराहे या मोहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है। मोहल्ले या गाँव भर के लोग नए पीले वस्त्र पहनकर अग्नि के चारों और जुट जाते हैं। घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार समेत अग्नि की परिक्रमा करता है। यह एक तरह से अग्नि की पूजा है। इस दौरान लोहड़ी माता के जयकारे भी लगाए जाते हैं।
पूजा के बाद रेवड़ी, टिल, मूंगफली और मक्के के भुने दाने अग्नि को चढ़ाये जाते हैं। उसके बाद ये चीजें प्रसाद के रूप में उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं। घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है। यह समृद्धि का प्रतीक है। परंपरा के अनुसार जिन घरों में परिवारों में लड़के का विवाह होता है या जिनको पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मोहल्ले या गांव भर में बच्चे ही रेवड़ी बांटते हैं।
लोहड़ी जलने के दौरान वहां उपस्थित लोग जमकर नृत्य करते हैं। इस समय गीत भी खूब उत्साह से गाये जाते हैं। पंजाब की लोहड़ी तो देखने लायक होती है। उसके बाद दिन-रात खुशियों में कब बीत गया, पता ही नहीं चलता। वैसे नृत्य और गीत तो कई दिन पहले से ही शुरू हो जाते हैं। लगता है कि सारी खुशियां यहीं पर उतर आई हैं। पंजाब वैसे भी उत्सवधर्मिता के लिए जाना जाता है। आजकल तो पूरे देश में लोहड़ी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा है।