अपमान का बदला लेने और दुश्मन को हराना चाहते हैं तो करें ये काम, मिलेगी सफलता

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अगर आप भी अपने अपमान का बदला और दुश्मन को हराना चाहते हैं तो आचार्य चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ यानी चाणक्य नीति में इस बारे में कई बातों का वर्णन किया है. जिसके जरिए आपको सफलता मिल सकेगी.  आइए जानते हैं चाणक्य के इस नीति के बारे में…

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अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्।
आत्मतुल्यबलं शत्रु: विनयेन बलेन वा।।

इस श्लोक में आचार्य कहते हैं कि मनुष्य को अपने शत्रु के बारे में पूरी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है. क्योंकि शत्रु कमजोर है या बलशाली इसकी जानकारी नहीं होने पर उसके खिलाफ नीति नहीं बनाई जा सकती.

वो कहते हैं कि अगर दुश्मन आपसे ज्यादा शक्तिशाली है तो उसे हराने के लिए व्यक्ति को उसके अनुकूल आचरण करना चाहिए. वहीं, अगर दुश्मन का स्वभाव दुष्ट है वो छल करने वाला है तो उसे हराने के लिए उसके विरूद्ध यानी उसके विपरीत आचरण करना चाहिए.

साथ ही चाणक्य कहते हैं कि दुश्मन अगर आपके बराबर का है तो उसे विनय पूर्वक या बल से मात देना चाहिए. वो कहते हैं कि हथियार से वार करने से पहले उसे अपने नीतियों को जाल में फंसाना चाहिए, ताकि वो चाहकर भी निकल न सके.

अपमान को लेकर चाणक्य कहते हैं कि अपमानित होने पर मनुष्य को चुप रहना चाहिए और अपमान करने वाले की तरफ देखकर मुस्करा देना चाहिए. वो बताते हैं कि मौन सबसे बड़ा हथियार होता है. मौन की स्थिति में सामने वाले को आपकी स्थिति के बारे में पता नहीं चल पाता.

नंद महाराज द्वारा अपमानित होने पर भी चाणक्य उग्र नहीं हुए और मौन साधकर काम जारी रखा और नंद को गद्दी से बेदखल कर चंद्रगुप्त को सम्राट बना दिया.

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