इस मामले में पाकिस्तान से भी पिछड़ा हिंदुस्तान, अब पूरी दुनिया के दिग्गज कह रहे हैं ये बात

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नई दिल्ली ।। हिंदुस्तान 117 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में पाकिस्तान से भी 8 पायदान नीचे फिसलकर 102वें स्थान पर जा पहुंचा है। यह दक्षिण एशियाई देशों का सबसे निचला पायदान है। बाकी दक्षिण एशियाई देश 66वें से 94 स्थान के बीच हैं। हिंदुस्तान ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और साउथ अफ्रीका) के बाकी देशों से बहुत पीछे है।

ब्रिक्स का सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश दक्षिण अफ्रीका 59वें स्थान पर है। सन 2015 में हिंदुस्तान की ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) रैंकिंग 93 थी। उस वर्ष दक्षिण एशिया में सिर्फ पाकिस्तान ही ऐसा देश था जो इस इंडेक्स में हिंदुस्तान से नीचे आया था।

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वह इस वर्ष हिंदुस्तान से आगे निकलकर 94वां स्थान हासिल किया है। सन 2014 से सन 2018 के बीच जुटाए आंकड़ों से तैयार ग्लोबल हंगर इंडेक्स विभिन्न देशों में कुपोषित बच्चों की आबादी, उनमें लंबाई के अनुपात में कम वजन या उम्र के अनुपात में कम लंबाई वाले पांच वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत और पांच वर्ष तक के बच्चे की मृत्यु दर पर आधारित हैं।

आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्तान के कारण जीएचआई में दक्षिण एशिया की स्थिति अफ्रिका के उप-सहारा क्षेत्र से भी बदतर हो गई। जीएचआई पर पेश एक रिपोर्ट कहती है कि हिंदुस्तान में 6 से 23 महीनों के सिर्फ 9.6 फीसदी बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकृत भोजन उपलब्ध हो पाता है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी हालिया रिपोर्ट में तो यह आंकड़ा 6.4 फीसदी ही बताया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सन 2000 के बाद से नेपाल ने इस मामले में सबसे ज्यादा सुधार किया है। भूख की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 अंक दिए गए और जीएचआई तैयार किया गया। इसमें 0 अंक सर्वोत्तम यानी भूख की स्थिति नहीं होना है।

10 से कम अंक का मतलब है कि देश में भूख की बेहद कम समस्या है। इसी तरह, 20 से 34।9 अंक का मतलब भूख का गंभीर संकट, 35 से 49।9 अंक का मतलब हालत चुनौतीपूर्ण है और 50 या इससे ज्यादा अंक का मतलब है कि वहां भूख की बेहद भयावह स्थिति है। हिंदुस्तान को 30।3 अंक मिला है, जिसका मतलब है कि यहां भूख का गंभीर संकट है। चुनौतीपूर्ण स्थिति वाली श्रेणी में सिर्फ चार देश हैं जबकि सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक बेहद भयावह स्थिति वाली कैटिगरी में आते हैं।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भूख का संकट चुनौतीपूर्ण स्तर पर पहुंच गया और इससे दुनिया के पिछले क्षेत्रों में लोगों के लिए भोजन की उपलब्धता और कठिन हो गया। इतना ही नहीं, जलवायु परिवर्तन से भोजन की गुणवत्ता और साफ-सफाई भी प्रभावित हो रही है। साथ ही, फसलों से मिलने वाले भोजन की पोषण क्षमता भी घट रही है। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया ने वर्ष 2000 के बाद भूख के संकट को कम तो किया है, लेकिन इस समस्या से पूरी तरह निजात पाने की दिशा में अब भी लंबी दूरी तय करनी होगी।

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