भारतीय वायुसेना लड़ाकू विमानों की बनाएगा इतनी नई स्क्वाड्रन, दुश्मन देश भी खाएंगे खौफ

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नई दिल्ली॥ मौजूदा समय में पाकिस्तान के साथ ही चीन से संघर्ष बढ़ने पर भारतीय वायुसेना एक साथ दो युद्ध लड़ने की क्षमता विकसित करना चाहती है। इसलिए फ्रांस से पांच राफेल फाइटर जेट की पहली खेप आने के बाद भारतीय वायुसेना को अभी भी कम से कम 230 लड़ाकू विमानों की जरूरत है।

Air Force-fighter aircraft-11 new squadrons

इसलिए लड़ाकू विमानों की 11 नई स्क्वाड्रन गठित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है। स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ और लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर ‘एलसीएच’ का सौदा एचएएल से अभी तक खटाई में पड़ा दिख रहा है। विश्व की चौथी सबसे बड़ी भारतीय वायुसेना के पास 900 लड़ाकू एयरक्राफ्ट हैं।

सेना के पास सात तरह के फाइटर एयरक्राफ्ट

भारतीय वायुसेना के पास फिलहाल सात तरह के फाइटर एयरक्राफ्ट हैं जिसमें सुखोई-30 एमकेआई, तेजस, मिराज 2000, मिग-29, मिग-21 और जगुआर शामिल हैं। फ्रांस की कंपनी डसॉल्ट एविएशन से 2016 में ऑर्डर किए गए 36 राफेल फाइटर जेट की पहली खेप के रूप में 5 विमान 29 जुलाई को भारत पहुंचे हैं। वायुसेना को मिलने वाले 36 राफेल विमानों में से 30 युद्धक विमान होंगे जबकि छह प्रशिक्षण विमान।

प्रशिक्षण विमान दो सीटों वाले होंगे और इनमें लगभग वो सारी खूबियां होंगी जो लड़ाकू विमानों में हैं। अभी तक भारतीय वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों की 31 स्क्वाड्रन हैं, जिनमें मिग-21 के पांच विमान भी शामिल हैं। अब तक इन मिग-21 की वायुसेना के बेड़े से विदाई हो जानी चाहिए थी जो नहीं हो पाई है क्योंकि वरिष्ठ वायु अधिकारियों का मानना है कि वायुसेना के पास मौजूदा 31 स्क्वाड्रन कम पड़ रही हैं जिसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।

दरअसल मौजूदा समय में पाकिस्तान के साथ ही अब चीन से संघर्ष बढ़ने पर भारतीय वायुसेना एक साथ दो युद्ध लड़ने की क्षमता विकसित करना चाहती है। इसके लिए कम से कम 42 स्क्वाड्रन की आवश्यकता महसूस की जा रही है। नई 11 स्क्वाड्रन के लिए वायुसेना को करीब 230 फाइटर जेट की जरूरत है। हालांकि राफेल जेट की आपूर्ति शुरू होने को अधिकारी वायुसेना की ताकत बढ़ने का पहला कदम मानते हैं लेकिन बाकी राफेल्स की आपूर्ति होने में अभी 34 महीने बाकी हैं। इसके पहले नई 11 स्क्वाड्रन गठित करने की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है।

5.2 बिलियन डॉलर का अनुबंध तैयार

अगले दो वर्षों में स्वदेश निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस मार्क-1ए के 83 जहाजों और लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर ‘एलसीएच’ के 85 जहाजों को वायुसेना के बेड़े में शामिल किया जाना है। स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस मार्क-1ए जेट के 83 विमानों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित 5.2 बिलियन डॉलर का अनुबंध तैयार है और इस साल दिसम्बर में या उससे पहले एचएएल को दिए जाने की संभावना है।

इसी तरह एचएएल ने पांच लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर ‘एलसीएच’ का उत्पादन भी शुरू कर दिया जिसमें से एचएएल ने एक जोड़ी एलसीएच एक सप्ताह के लिए ट्रायल के तौर पर वायुसेना को सौंप दिए हैं जो इस समय प्रक्षेपण तैनाती के हिस्से के रूप में लद्दाख में लेह और अन्य एयरबेसों के बीच सशस्त्र गश्ती दल उड़ान भर रहे हैं।

खर्च होंगे 418 करोड़ रुपये

भारत ने 33 लड़ाकू जेट का ऑर्डर अपने पुराने सैन्य सहयोगी रूस को दिया है। इनमें 12 सुखोई 30 एमकेआई और 21 नये रूसी मिग-29 लड़ाकू विमान हैं। भारतीय वायुसेना के पास पहले से ही मौजूद 59 मिग-29 के लिए तीन स्क्वाड्रन हैं और पायलट भी इससे परिचित हैंं। नए मिग-29 की खरीद और पुराने 59 मिग-29 के अपग्रेडेशन पर 7 हजार 418 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

इसके अलावा एचएएल से 12 सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान 10 हजार 730 करोड़ रुपये में खरीदे जायेंगे। भारत के पास 272 ऐसे जेट्स के लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के लिए रूस से मंजूरी है। अब लिये जाने वाले 12 सुखोई 30 एमकेआई तत्काल कमी को पूरा करने के साथ ही पिछले एक दशक में दुर्घटनाग्रस्त हुए विमानों की भी भरपाई करेंगे।

वायुसेना को अगर 83 तेजस मार्क-1ए , 85 एलसीएच, 21 रूसी मिग-29 और 12 सुखोई 30 एमकेआई की आपूर्ति हो भी जाए, तब भी 30 लड़ाकू विमानों की कमी रह जाती है। अब रक्षा मंत्रालय ने ‘आत्म निर्भर भारत’ के तहत आर्टिलरी गन, असॉल्ट राइफलें, लड़ाकू जलपोत, सोनार प्रणाली, मालवाहक विमान, हल्के लड़ाकू विमान (एलसीएच), रडार जैसी उच्च प्रौद्योगिकी हथियार प्रणालियों के आयात पर प्रतिबन्ध लगा दिया है जिससे भारतीय वायुसेना की जरूरतें स्वदेशी बाजार से किस हद तक पूरी हो पाएंगी, यह वक्त बताएगा।

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