बुरे दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था, हालत और खराब होने की संभावना

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कोरोना संकट के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर में पहुंच चुकी है। अगले कुछ माह में हालत और खराब होने की संभावना है। रेटिंग एजेंसी मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस का भी ऐसा ही अनुमान है। विश्व बैंक के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था 1.8 फीसदी से लेकर 2.8 फीसदी की दर से बढ़ेगी। कुछ विशेषज्ञों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की बृद्धिदार ऋणात्मक होबे का अनुमान भी व्यक्त किया है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के भारत सरकार की कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं।

रेटिंग एजेंसी मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस के अनुमान के मुताबिक़ कोरोना महामारी की वजह से खपत कम होने और कारोबारी गतिविधियां थमने से चुनौतियों का सामना कर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आएगी। मूडीज के मुताबिक कोरोना वायरस संकट से पहले भी भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी पड़ गयी थी और यह 6 वर्ष की सबसे निचली दर पर पहुंच गयी थी। अर्थव्यवस्था की समस्याएं सरकार द्वारा आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में उठाए गए क़दमों से बहुत ज्यादा व्यापक हैं।

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मूडीज की रिपोर्ट में कहा गया कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी वृद्धि दर में वास्तविक गिरावट आएगी। इससे पहले हमने वृद्धि दर शून्य रहने की संभावना जतायी थी। हालांकि मूडीज ने 2021-22 में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होने की उम्मीद जतायी। रिपोर्ट में कहा गया है भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोरोना संकट का गहरा असर पड़ने की संभावना है।

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इसी तरह विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 1.5 फीसदी से लेकर 2.8 फीसदी तक रहेगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर लाकडाउन आगे बढ़ता है तो भारत आर्थिक दबाव महसूस करेगा। विश्व बैंक ने भारत से अल्पकालिक आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों को वित्तीय सहायता देने और व्यापारियों को ऋण राहत देने का आग्रह किया है।

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कोरोना त्रासदी के चलते पिछले दो महीने से भी अधिक समय से पूरा देश लॉकडाउन है। 1.3 अरब लोग घरों में बंद हैं, काम धाम ठप्प हैं। शहरों से मजदूरों का पलायन जारी है। ऐसे में कल-कारखानों के खुलने के बाद कामगारों की समस्या होगी। प्रवासी कामगारों को गांव में काम मिलेगा नहीं। इस तरह वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बोझ ही साबित होंगे। केंद्र व राज्य सरकारें चाहे जो दवा करें, लेकिन गांव लौट चुके प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा के अलावा फिलहाल अन्य कोई विकल्प नहीं नजर आ रहा है।

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