सांस्कृतिक एकता एवं सहज सौहार्द्र का प्रतीक है जगन्नाथ रथयात्रा

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पुरी में भगवान जगन्नाथ के विश्व प्रसिद्ध मंदिर में स्थापीर मूर्तियों की स्थापत्य कला और समुद्र का मनोरम तट पर्यटकों को आकर्षित करता है। ऐसे मनोरम स्थान पर यात्रा महोत्सव की महत्ता स्वयं बढ़ जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस वर्ष रथयात्रा 12 जुलाई से शुरू होगी जिसका समापन 20 जुलाई को होगा।

शास्त्रों में भगवान जगन्नाथ के रथ-यात्रा की महत्ता का विशद वर्णन किया गया है। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसी तरह जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाते हैं वे सीधे भगवान श्री विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त करते हैं।

रथयात्रा एक ऐसा महापर्व है, जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं चलकर भक्तों के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं। सब मनिसा मोर परजा (सब मनुष्य मेरी प्रजा है), ये भगवान जगन्नाथ के उद्गार है। भगवान जगन्नाथ तो पुरुषोत्तम हैं। उनमें श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महायान का शून्य और अद्वैत का ब्रह्म समाहित है। उनके अनेक नाम है, वे पतित पावन हैं। वे सर्वव्यापी हैं।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा महोत्सव में अद्भुत सांस्कृतिक एवं पौराणिक दृश्य उपस्थित होता है, जिसे सौहार्द्र, भाई-चारे और एकता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है। यात्रा संपन्न होने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति से पुरी के भगवान जगन्नाथ मन्दिर में बैठकर एक साथ श्री जगन्नाथ जी का महाप्रसाद प्राप्त करते हैं उससे वसुधैव कुटुंबकम का महत्व स्वत: परिलक्षित होता है। उत्साहपूर्वक श्री जगन्नाथ जी का रथ खींचकर लोग अपने आपको धन्य समझते हैं। श्री जगन्नाथपुरी की यह रथयात्रा सांस्कृतिक एकता तथा सहज सौहार्द्र का एक महत्वपूर्ण स्वरूप है।

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