Jews को इस राज्य में मिला अल्पसंख्यक का दर्जा, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कही ये बात

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नई दिल्ली, 28 मार्च। केंद्र सरकार ने एक याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि कोई भी राज्य भाषाई और संख्या के आधार पर हिंदू को भी अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकता है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों (Jews) को राज्य में अल्पसंख्यक का दर्जा दिया है। इसके अलावा कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलुगु, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलू, लंबाड़ी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषाओं के तहत अधिसूचित किया गया है।

Jews in Maharashtra

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य भाषा या धर्म के आधार पर कम संख्या वाले समूहों के संस्थानों को भी अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दे सकते हैं। यह सब राज्य के कानून के अंतर्गत किया जा सकता है। उदाहरण देते हुए सरकार ने कहा कि कर्नाटक सरकार ने 13 फरवरी 2020 को तेलुगु अनऐडेड प्राइवेट स्कूलों को अल्पसंख्यक स्कूलों का दर्जा दे दिया है।

राष्ट्रीय स्तर पर तय नहीं होना चाहिए मामला

केंद्र ने कहा कि भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक होने का मामला केवल राष्ट्रीय स्तर पर तय नहीं होना चाहिए। हो सकता है कि एक राज्य में जो लोग बहुसंख्यक हों, वही लोग दूसरे राज्य में अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आते हों। हालांकि यहूदियों (Jews) को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से दूसरे धर्म के लोग भी सवाल खड़े करना शुरू कर देंगे.

भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में केंद्रीय मंत्रालय ने कहा कि हिंदू धर्म को मानने वाले जो लोग लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, नगालैंड, कश्मीर, मेघालय, पंजाब या अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं। वे अपनी पसंद के संस्थानों की स्थापना नहीं कर पा रहे हैं। यह गलत है।

अश्विनी कुमार की जनहित याचिका में उन्होंने राष्ट्रीय आयोग अधिनियम 2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि यह केंद्र को अकूत शक्त देती है जो कि अतार्किक है। याचिकाकर्ता ने राज्यों में अल्पसंख्यक तय करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।

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