Up kiran,Digital Desk : पाकिस्तान में इस वक्त एक बड़ा संवैधानिक सवाल खड़ा हो गया है। सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को और ज़्यादा ताकत देने वाले एक नए कानून पर अब देश के जज ही सवाल उठा रहे हैं। ताज़ा ख़बर ये है कि इस्लामाबाद हाईकोर्ट के चार जजों ने इस कानून के खिलाफ आवाज़ उठाई, लेकिन हैरानी की बात है कि खुद देश की सबसे बड़ी अदालत, यानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका सुनने से ही मना कर दिया।
आखिर क्या है ये 27वां संशोधन, जिस पर मचा है बवाल?
चलिए, पहले आसान भाषा में समझते हैं कि ये मामला है क्या। कुछ हफ़्ते पहले पाकिस्तान की सरकार संविधान में 27वां बदलाव लेकर आई। इस बदलाव से तीन बड़ी चीज़ें हुईं:
- ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ का नया पद: देश में एक नया और बेहद शक्तिशाली पद बनाया गया है।
- फील्ड मार्शल को बेहिसाब ताकत: इस कानून के तहत फील्ड मार्शल आसिम मुनीर अब ज़िंदगी भर अपने पद पर बने रहेंगे। रिटायर होने के बाद भी वो रक्षा मामलों में सरकार के सबसे खास सलाहकार होंगे। और सबसे बड़ी बात, उन पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकेगी, यानी उन्हें हर तरह के केस से पूरी सुरक्षा (इम्युनिटी) मिल गई है।
- एक नई अदालत का गठन: संवैधानिक मामलों को सुनने के लिए एक नई 'संघीय संविधान अदालत' (FCC) बना दी गई है।
सीधे शब्दों में कहें तो इस कानून ने सेना प्रमुख को पहले से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बना दिया है और यह पद अब हमेशा के लिए उनका हो गया है।
इस पर जजों को क्या ऐतराज है?
इस्लामाबाद हाईकोर्ट के चार जजों—जस्टिस मोहसिन अख्तर कयानी, जस्टिस बाबर सत्तार, जस्टिस सरदार एजाज इशाक खान और जस्टिस समन रिफत इम्तियाज—का मानना है कि यह कानून सीधे तौर पर न्यायपालिका की आज़ादी पर हमला है।
उन्हें लगता है कि सरकार धीरे-धीरे अदालत की ताकत को खत्म कर रही है ताकि कोई भी सरकारी या सेना के फैसलों पर सवाल न उठा सके। उनका कहना है कि ये कोशिशें 26वें संशोधन से ही शुरू हो गई थीं और अब 27वें संशोधन ने तो हद ही कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों नहीं सुनी याचिका?
इन जजों ने अपनी शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर मामला सुनने से इनकार कर दिया कि नए संशोधन ने मौलिक अधिकारों से जुड़े मामलों को सुनने की उसकी ताकत ही छीन ली है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन जजों को सलाह दी कि वे अपनी शिकायत लेकर नई बनी 'संघीय संविधान अदालत' (FCC) के पास जाएं, क्योंकि ऐसे मामले सुनने के लिए ही उसे बनाया गया है।
कहानी का सबसे दिलचस्प मोड़
अब यहाँ एक बड़ा पेंच है। जिन जजों ने इस कानून को चुनौती दी है, उनका तर्क है कि जिस नई अदालत (FCC) के पास जाने को कहा जा रहा है, वह तो खुद उसी 27वें संशोधन से बनी है, जिसके खिलाफ वे लड़ रहे हैं। उनका सवाल सीधा है - कोई अदालत अपने ही जन्म के लिए ज़िम्मेदार कानून को गलत कैसे ठहरा सकती है? यह तो सीधे तौर पर हितों का टकराव है।
यह मामला अब पाकिस्तान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सरकार के अधिकार के बीच एक बड़ी बहस बन चुका है।
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